नई दिल्ली.  देश के दुश्मन के दांत तोड़ने से बड़ी देशभक्ति दूसरी नहीं हो सकती. प्रसिद्ध शिक्षाविद सोनम वांगचुक को हम देशभक्त नंबर वन की श्रेणी में रख सकते हैं जिन्होंने सीमा पर भारत को आँख दिखाने वाले चीन को सीमा के भीतर निपटाने की योजना बना ली है और सारे देश के नागरिकों से अपील की है कि चीनी सामान का बहिष्कार करो और दुश्मन नंबर वन के दांत खट्टे करो.


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भारत कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर है 


थ्री इडियट्स नामक सुपरहिट फिल्म के जीवंत प्रणेता सोनम वांगचुक ने कहा कि हमारा देश अभी मैन्युफैक्चरिंग, हार्डवेयर, दवाओं के कच्चे माल, मेडिकल इंस्ट्रूमेंट और चप्पल-जूते जैसी तमाम वस्तुओं के उत्पादन के लिये चीन का मुंह देखता है.  इसलिए इन वस्तुओं का उत्पादन हमें भारत में करना होगा और कोशिश ये भी करनी होगी कि इनका दाम अधिक न हो ताकि आमजन इसे खरीद सकें.


''चीन को पैसा मत दीजिये''


जो अहम बात वांगचुक ने कही वो सबकी समझ में आने वाली है. उन्होंने कहा कि जब हम भारतीय चीन में बना हुआ सामान खरीदते हैं तो उसका पैसा सीधे चीनी सरकार की जेब में जाता है. इन पैसों से चीन की सरकार बंदूकें खरीदकर हमारे खिलाफ ही इस्तेमाल करने वाली है. अगर हम अपने देश का बना हुआ सामान जो कि थोड़ा महंगा होता है, खरीदना शुरू करें तो ये पैसा हमारे मजदूर-किसानों के ही काम आने वाला है.


 



 


''योजना बना कर करना होगा बहिष्कार'' 


व्यावहारिक तथ्यों को ध्यान में रख कर वांगचुक ने कहा कि चीन के बनी वस्तुओं का बहिष्कार हम तुरंत नहीं कर पाएंगे. इस काम को हमें योजनाबद्ध तरीके से करना होगा. सबसे पहले चीनी सॉफ्टवेयर एक हफ्ते में और फिर चीनी हार्डवेयर को एक साल के भीतर बॉयकॉट कर देना चाहिए. और इस दौरान ही भारत की कंपनियों को दूसरे देशों से यही सामान बनवाने या मंगाने के तरीके ढूंढने होंगे. जो भारतीय कंपनियां कच्चे सामान पर निर्भर हैं उनको अपने कच्चे माल को दूसरे देशों से आउटसोर्सिंग के माध्यम से मंगाने के तरीके खोजने होंगे..


''जैन धर्म के लोगों की तरह लें संकल्प''


वांगचुक ने कहा कि हमें जैन धर्म से संकल्प लेना और उसे निभाना सीखना होगा. जिस तरह से हमारे जैन भाई मीट, प्याज जैसी चीजें नहीं खाते हैं और सदा ही दृढ संकल्पित रहते हैं कि वे जीवन में इन वस्तुओं का सेवन नहीं करेंगे, चीनी वस्तुओं के बहिष्कार के मामले में हमें भी ऐसा ही संकल्प लेना है. हम इतने दृढ निश्चयी हो जायें कि हमें चीनी सामान नहीं लेना है तो नहीं लेना है! 



 


''गैर-चाइनीज़ बाज़ार बनाना होगा हमें'' 


जिस तरह से जैन भाइयों की प्रतिबद्धता का प्रभाव बाजार पर पड़ा और इस तरह के भोजनालय, रेस्त्रां शुरू हो गए, जो जैन खाना देने लगे. जैन भाइयों की आदत और परंपरा से जुड़ा हुआ नया बाजार तैयार हो गया. इसलिए ध्यान रखें कि जिस तरह जैनियों के लिए जैन फूड तैयार होता है, ठीक उसी तरह से हम सभी को मिल कर चीन पर निर्भरता खत्म करने के लिए गैर-चाइनीज बाजार तैयार करना होगा.


जनता ही सफल करेगी अभियान 


वांगचुक का मानना है कि देश की जनता ही इस अभियान को सफल बना सकती है और उसे ही ये उत्तरदायित्व अपने हाथों में लेना होगा.  हमें सरकार पर हर चीज नहीं छोड़नी चाहिए. वैसे तो हमारी सरकार ने इसकी शुरुआत कर ही दी है. अब हमको अपनी सहूलियत के लिए मेड इन चाइना का सामान खरीदने की अपनी आदत को लगाम देना होगा. 


''नए विकल्प अपनेआप बनेंगे''


वांगचुक ने कहा - कब तक हम चीन का दोयम दर्जे का सामान खरीदते रहेंगे? जब हम चीन के सामान का बहिष्कार करना शुरू करेंगे तो उसके कारण दूसरे अन्य देशों से विकल्प खुद ही आएंगे. दूसरे अच्छी गुणवत्ता का उत्पादन करने वाले देशों को दिखने लगेगा कि भारत में चीनी सामान के बॉयकाॅट से एक बहुत बड़ा रिक्त स्थान बन गया है जिसका लाभ वे उठा सकेंगे. वियतनाम, ताइवान, बांग्लादेश जैसे दूसरे देशों की कंपनियां भारत आएँगी और चीन के बायकाट से बने वैक्यूम को अपने उत्पादों से भरेंगी. उनकी गुणवत्ता और कीमत दोनों ही चीन के मुकाबले भारत के हिट में अधिक होंगी.


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