नई दिल्ली: हालांकि इस खुलासे से ये कहीं नहीं सिद्ध होता कि दुनिया पर मौत का फरमान बन कर मंडरा रहे कोरोना वायरस को बनाने में या कोरोना फैला कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की किसी साजिश में अमरीका का कोई लेना देना है. इस खुलासे से यही सामने आया है कि वुहान की संदिग्ध प्रयोगशाला के साथ अमेरिका का कनेक्शन था.


पहले लगाये गये कई अनुमान


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कोरोना के वैश्विक संक्रमण को लेकर दुनिया भर में एक जो सबसे बड़ा संदेह सामने आया है वो ये है कि इस साजिश के पीछे चीन का कोई स्वार्थ है. चीन के वुहान शहर से फैले इस कोरोना वायरस को लेकर पहले कहा गया कि ये वायरस वूहान के एनीमल मार्केट से निकल कर इंसानों तक पहुंचा है.


बाद में दावा किया गया कि ऐसे वायरस चमगादड़ में पाए जाते हैं, इसलिए हो सकता है कि यह चमगादड़ से इंसानों में आया. ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर की खुफिया एजेन्सी कोबरा कमेटी ने भी इस जहरीली प्रयोगशाला से कोरोना वायरस फैलने की थ्योरी पर विश्वास जताया है.


फिर कोरोना-लैब आई संदेहों के घेरे में


इन मिथ्या अनुमानों और दावों के बाद चीन की वायरलॉजी लैब पर शक की उंगलियां उठने लगीं. इसका कारण भी निराधार नहीं था क्योंकि चीन की यह सबले बड़ी लैब वुहान के एनीमल मार्केट के बहुत पास स्थित है. इस अत्याधुनिक प्रयोगशाला में दुनिया भर के वायरसों पर शोध चलता है और अब यही संदिग्ध प्रयोगशाला अमेरिका से जुड़ी हुई पाई गई है.


डेली मेल ने किया खुलासा


अपनी विश्वस्त पत्रकारिता के लिये जाना जाने वाला ब्रिटिश समाचार पत्र इस खुलासे के पीछे है. डेली मेल ने अपनी एक रिपोर्ट में यह दावा किया है कि उसे कुछ दस्तावेजों के माध्यम से इस बात की जानकारी मिली है कि अमेरिका की सरकार ने वुहान स्थित इस वायरालॉजी प्रयोगशाला को 28 करोड़ रुपये का अनुदान दिया है.



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ये रकम एक बार में नहीं दी गई बल्कि पिछले कई सालों के दौरान यह पैसा दिया गया. इस जानकारी के बाद हैरान अमेरिकी नेताओं ने अपने देश की ओर से चीनी लैब को दिये जाने वाले इस अनुदान पर कड़ा ऐतराज जताया है. 


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