नई दिल्ली.   जो होता है अच्छे के लिए होता है. चीन की बदतमीज़ी ने हमे बहुत कुछ सीखा दिया है. अब भारतीय सेना को कुछ जरूरी बदलाव चाहिए और ऐसा करना आवश्यक नहीं है अपितु अब अनिवार्य है. सरकार को भी सेना का साथ देना होगा और सेना को अपनी सबसे बड़ी संपत्ति मान कर चलना होगा और उसे वही व्यवहार भी देना होगा.


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मनोबल बढ़ाने की ज़रूरत है सेना की 


बरसों तक कश्मीर में पत्थर और गालियां खाती भारतीय सेना का मनोबल कितना अंदर ही अंदर टूटा है, इस बात पर किसी ने गौर नहीं किया है. अब यही सेना अगर जंग के मैदान में जा कर जंग लड़ेगी, तो सेना के इन जवानों का मन उन्हें खुद जंग लड़ने से मना कर देगा. कारण जाहिर है जब सेना को गालियां खाने की आदत पड़ जायेगी तो वह गोलियों के सामने कैसे टिक पाएगी. जब सेना के जवान रोज़ पत्थर खाएंगे तो जंग में गोला बारूद किस जिगरे से चलाएंगे ?



 


सामान्य सेना और जंगी सेना 


अब समय आ गया है कि सेना के दो हिस्से किये जायें.  देश के भीतर इस्तेमाल की जाने वाली सेना को सामान्य श्रेणी में रखना होगा और जंग लड़ने वाली प्रमुख सेना का हिस्सा इसका तीन गुना अधिक होगा. और जब तक अनिवार्य न हो जाये इन दोनो श्रेणियों को आपस में मिश्रित न किया जाये.



 


नई गोरखा रेजीमेन्ट्स चाहिये


कम लोग ही जानते हैं कि गोरखा रजीमेन्ट को दुनिया की सबसे घातक रेजीमेन्ट माना जाता है. गोरखा रेजीमेन्ट के जवान पहाड़ी जंग लड़ने में भी कुशल होते हैं और जितनी कुशलता से गन चलाते हैं उतनी ही कुशलता से खुखरी भी चलाते हैं. चाहे वह 1880  का अफगान वार हो, 1943 के दौरान का द्वितीय विश्वयुद्ध हो या फिर कारगिल युद्ध हो - गोरखा रेजीमेन्ट ने अपनी जबरदस्त जंग लड़ने की शैली से भारत के लिये जीत का परचम लहराया है. भारत को ऐसी औऱ भी तमाम गोरखा बटालियन्स चाहिये ताकि युद्ध की बर्बरता को जमीन पर उतार कर दुश्मन सेना को थर्राया जा सके.


(इस आलेख के लेखक सशस्त्र अमेरीकी सेना के अंग रह चुके हैं और अमेरिकन नेवी एवियेशन के एयर रेस्क्यू डाइवर (ARD) पद से ऑनरेबल डिस्चार्ज (1995) प्राप्त एक्स-सर्विसमैन हैं.)

 


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