नई दिल्ली. रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के दौरान अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA ने बड़ा दावा किया है. CIA के डायरेक्टर विलियम बर्न्स ने कहा है कि यूक्रेन ने अब तक रूस के 15 हजार से ज्यादा सैनिकों को मारा है और करीब 45 हजार को जख्मी कर दिया है. रूस जैसी सैन्य शक्ति के सामने यूक्रेन के डटकर खड़े हो जाने के कारण चीन भी घबराया हुआ है. 


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बर्न्स ने कहा- अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के आकलन के मुताबिक करीब 15 हजार रूसी सैनिक मारे गए हैं. जख्मी होने के वालों की संख्या इसकी तीन गुना हो सकती है. यह रूस के लिए बड़ा झटका है. यूक्रेन के लोगों को भी इस युद्ध में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा  है. 


'रूसी राष्ट्रपति पूरी तरह से स्वस्थ'
इससे पहले मार्च महीने में रूस ने भी स्वीकार किया था कि उसने 1351 सैन्यकर्मियों को खो दिया है. लेकिन रूस की तरफ से संख्या को लेकर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई थी. सीआईए के डायरेक्टर बर्न्स ने इस आशंका को भी खारिज किया कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं. उन्होंने कहा-राष्ट्रपति पुतिन के स्वास्थ्य को लेकर कई तरह की अफवाहें हैं. लेकिन जहां तक हम जानते हैं वो पूरी तरह से स्वस्थ हैं. 


राजदूत भी रह चुके हैं बर्न्स
बता दें कि बर्न्स पहले मॉस्को में राजदूत के रूप में भी काम कर चुके हैं. बर्न्स ने कहा- वो (पुतिन) पूरी तरह से भरोसा करते हैं कि एक रूसी नेता के तौर पर उन्हें देश के गौरव को वापस दिलाना है. उनका मानना है कि ऐसा करने के लिए रूस को अपने पड़ोसी देशों पर सबसे पहले प्रभाव जमाना होगा. और ऐसा यूक्रेन पर नियंत्रण के बिना बिल्कुल संभव नहीं है. 


रणनीतिक रूप से विफल रहे पुतिन!
हालांकि बर्न्स ने रूस के यूक्रेन पर हमले को एक 'रणनीतिक विफलता' करार दिया है. बर्न्स का यह भी मानना है कि रूस के यूक्रेन पर असफल आक्रमण से चीन ने भी ताइवान को लेकर अपनी रणनीति पर फिर से विचार शुरू कर दिया है. संभव है कि ताइवान पर अपनी शक्ति का इस्तेमाल करने को लेकर चीन अभी और कुछ वर्षों का इंतजार करे.  


चीन को हो रहा है फायदा?
एक अन्य मीडिया रिपोर्ट में चीन और रूस के बीच नए घटनाक्रम को भी रेखांकित किया गया है. रिपोर्ट कहती है कि यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध में रूस को अब चीन साथ बातचीत की टेबल पर आना पड़ा है. रूस भी इस युद्ध में लगातार कमजोर हो रहा है. दूसरी तरफ चीन इस मौके को अपने बेल्ट एंड रोड इनिशियेटिव प्रोजेक्ट के लिए एक मौके के तौर पर देख रहा है. इससे पहले तक इस प्रोजेक्ट को लेकर रूस की तरफ से हिचकिचाहट जारी की जा रही थी. लेकिन युद्ध के कारण पैदा हुई आर्थिक चुनौतियों के कारण रूस अब बैठक की टेबल पर आ रहा है. 


दरअसल यूक्रेन को जिस तरीके से यूरोपीय देशों और अमेरिका की तरफ से आर्थिक और सैन्य मदद पहुंचाई गई, उसके कारण रूस के लिए युद्ध ज्यादा कठिन होता गया है. उसके पास इस वक्त विकल्प के तौर पर चीन ही है. कोरोना महामारी के वक्त में कई यूरोपीय देशों और अमेरिका के निशाने पर चीन भी रहा है. इसी कारण ड्रैगन से पश्चिमी देशों के रिश्तों पर भी गंभीर असर पड़ा है.



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