शक्तिपीठ श्री नैनादेवी में जगह-जगह लैंडस्लाइड से बढ़ी लोगों की मुसीबतें, पलायन को मजबूर
Bilaspur News: बिलासपुर जिला में हुई मानसून की बरसात के चलते नैनादेवी क्षेत्र में जगह-जगह लैंडस्लाइड हुआ. वहीं, भूस्खलन ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है.
Himachal Pradesh Landslide News: हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर स्थित विश्वविख्यात शक्तिपीठ श्री नैनादेवी क्षेत्र पर मानसून की पहली बारिश का काफी असर देखने को मिला है. नैनादेवी की पहाड़ी जगह जगह से भूस्खलन का शिकार हुई है. हालांकि यह पहाड़ी पहले ही डेंजर जोन में बताई जा रही है. उस पर इतनी ज्यादा तरीके से भूस्खलन होना किसी खतरे से खाली नहीं है.
गौरतलब है कि नैनादेवी क्षेत्र का वार्ड नंबर-3, वार्ड नंबर-4, वार्ड नंबर-5 और 6 पर अक्सर भूस्खलन का खतरा बना रहता था, लेकिन इस बार वार्ड नंबर-2 में भी हुए भूस्खलन ने स्थानीय लोगों की चिंताएं बढ़ा दी है.
इस भारी बरसात में जहां नैनादेवी की सड़कों पर भारी भूस्खलन हुआ, जिससे आने जाने के सभी रास्ते बंद हो गए थे. तो वहीं पर नैनादेवी मंदिर के समीप नगर परिषद पार्क के पास भी भारी भूस्खलन हुआ है. यहां पर जो सुरक्षा दिवार के रूप में डंगा लगाया गया था. वह डंगा हवा में लटकता रह गया. जबकि नीचे से मिट्टी खिसक गई.
वहीं स्थानीय लोगों की माने तो, नैनादेवी की पहाड़ी पर हो रही लैंडस्लाइड की मुख्य वजह पानी की सही निकासी ना होना और पहाड़ी पर लगातार चलने वाली खुदाई है. जिसके चलते नैनादेवी की पहाड़ी डेंजर जोन में है. वहीं स्थानीय लोगों का कहना है आने वाले समय में भी अगर इसी प्रकार जमीन की खुदाई होती रही तो, हालात बद से बदतर हो जाएंगे.
साथ ही लोगों का कहना है कि नैनादेवी की पहाड़ी को अगर बचाना है तो किसी भी प्रकार की खुदाई पर तुरंत प्रभाव से रोक लगानी होगी और शहर की पानी की निकासी को ठीक करना भी निहायती जरूरी है. आपको बता दें, कि नैनादेवी से लेकर कोला वाला टोबा तक जगह-जगह भूस्खलन हुआ है. जहां से मलबा हटाने का काम पीडब्लूडी विभाग द्वारा किया जा रहा है. इसके अलावा नैनादेवी श्मशान घाट के लिए जो रास्ते का निर्माण किया जा रहा था.
वह भी पूरी तरह से भूस्खलन का शिकार हो गया. वहीं समय-समय पर इस पहाड़ी को लेकर समाजसेवी संस्थाओं व स्थानीय लोगों ने अपनी आवाज बुलंद करते रहे हैं, लेकिन धरातल पर इस पहाड़ी को बचाने के लिए किसी प्रकार की मुहिम नजर नहीं आई. वहीं प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन को इस पहाड़ी को बचाने के लिए विशेष अभियान शुरू करना चाहिए और इस पहाड़ी पर होने वाली खुदाई को बंद करना चाहिए. ताकि आने वाले समय में उत्तराखंड के जोशीमठ जैसे हालात यहां पैदा ना हो सके और स्थानीय लोगों को यहां से पलायन करने पर मजबूर ना होना पड़े.
इसके अलावा मंदिर के समीप इस पहाड़ी पर हालांकि बहुत कम वृक्ष है, लेकिन उनमें से भी ज्यादातर वृक्षों को निर्माण कार्यों के चलते काट दिया गया है. जिससे इस पहाड़ी पर भूस्खलन का खतरा लगातार बढ़ रहा है. इसलिए प्रशासन को चाहिए कि नैनादेवी की पहाड़ी पर ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण किया जाए.