ज्ञान प्रकाश/पांवटा साहिब: देश और प्रदेश में भले ही पानी से चलने वाले घराट यानी आटा चक्की लुप्त हो चुके हैं, लेकिन सिरमौर जिला के दूरदराज वाले पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी दर्जनों घराट हजारों साल पुरानी तकनीक और स्वरूप में ही चल रहे हैं. घराटों पर तकनीकी बदलाव का कोई असर नहीं पड़ा है. घराट में पिसे आटे की उच्च गुणवत्ता और बेहतरीन स्वाद के कारण आज भी पहाड़ों में लोग इसका प्रयोग करते हैं.


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पानी से चलने वाली आटा चक्की विश्व भर में दशकों पहले लुप्त हो चुकी हैं, लेकिन सिरमौर जिले के पहाड़ी क्षेत्रों में घराट यानी 'पनचक्की' आज भी मौजूद हैं. यहां घराट आज भी सदियों पुरानी तकनीक के आधार पर संचालित होते हैं. बिना सरकारी मदद और कर्ज लगाए उक्त घराट कुछ लोगों के लिए स्वरोजगार का साधन भी बने हुए हैं. 


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हालांकि ग्रामीण इन क्षेत्रों में बिजली की चक्कियां पहुंच गई हैं. साथ ही ब्रांडेड व बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आटे की भी सप्लाई होती है, लेकिन अधिकतर ग्रामीण अपने अनाज घराट में ही पिसवाना पसंद करते हैं. लोगों का मानना है कि पानी की चक्की में पिसे हुए आटे में अनाज की गुणवत्ता बरकरार रहती है और इसका स्वाद भी मिल या चक्की में पिसे आटे की अपेक्षा अच्छा होता है.


घराट संचालक को ना तो बड़ा प्लांट लगाना होता है और ना ही बिजली का भारी भरकम बिल भरना होता है. लिहाजा घराट कई लोगों के लिए सरल आजीविका का साधन भी बने हुए हैं. सीऊं गांव के घराट मालिक रघुवीर सिंह ने बताया कि, कईं पीढ़ियों से घराट उनके परिवार की आय का मुख्य जरिया बना हुआ है. जमीन कम होने के चलते आमदनी का मुख्य साधन घराट ही बना हुआ है.


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दरअसल, पनचक्की का आटा पीसने वाला पत्थर विशेष किस्म का होता है और कम गति से घूमता है. इससे अनाज के पौष्टिक तत्व नष्ट नहीं होते हैं. इसका स्वाद भी बेहतर होता है. पैसे में स्थानीय लोग पनचक्की में ही आटा पिसवाना पसंद करते हैं. उच्च गुणवत्ता और बेहतर स्वाद की वजह से आज भी पंचक्कियों का वजूद कायम है.


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