अनूप धीमान/पालमपुर: कश्मीर के बाद हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में देश का दूसरा ट्यूलिप गार्डन सीएसआईआर के हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा विकसित किया गया है. यह पहला ट्यूलिप गार्डन है जो पूरी तरह स्वदेशी ट्यूलिप पौध से विकसित किया गया है. इसकी पौध को लाहौल-स्पीति में तैयार किया गया है. भारत में टयूलिप के पौधे नीदरलैंड, होलेंड और अफगानिस्तान से आयात किए जाते हैं. मुख्य रूप से भारत के लिए अफगानिस्तान की आयात का मुख्य माध्यम है. 


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ट्यूलिप हौलैंड में बहुतायत में पाया जाता है. इस पुष्प का गहरा रंग और सुंदर आकार लोगों को अपनी आकर्षित करता है. यह अपनी समरूपता के लिए विश्वभर में विख्यात है. इस फूल का गहरा रंग और सुंदर आकार मन को मोह लेता है. इसकी कई खूबसूरत प्रजातियां हैं. सीएसआईआर आईएचबीटी संस्थान पालमपुर में इस बार 6 किस्मों के करीब 50 हजार ट्यूलिप बल्ब (पौधे) लगाए गए हैं.


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पिछले साल यहां 50 हजार बल्ब (पौधे) लगाए गए थे. आजकल यह गार्डन पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. सीएसआईआर हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर में ट्यूलिप गार्डन की सुंदरता को निहारने के लिए बड़ी संख्या में आगंतुक पहुंचने लगे हैं. यहां पहुंच रहे पर्यटक कश्मीर का एहसास अब पालमपुर में ही कर रहे हैं.


वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. भव्य भार्गव ने बताया कि वह देश में ट्यूलिप बल्ब का विदेशों से आयात करते हैं. यहां ट्यूलिप बल्ब लगाने पर काफी समस्या होती थी, लेकिन संस्थान ने प्रदेश के लौहाल स्पीति में पिछले 5 वर्षो में शोध कर ट्यूलिप के बल्ब जलवायु में तैयार कर सफलता हासिल की है. उन्होंने कहा कि ट्यूलिप के फूलों की काफी मांग रहती है. अगर किसान इन्हें अपने खेतों में लगाते हैं तो उनकी आमदनी में काफी वृद्धि होगी. इस कार्य से लाहौल स्पीति के 50 किसान जुड़े हैं और डेढ़ लाख के आस-पास लोग वहीं बल्ब तैयार कर रहे हैं. संस्थान का लक्ष्य अगले कुछ वर्षों में हिमाचल में पांच लाख बल्ब तैयार करने का है. 


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डॉ. भव्य भार्गव ने कहा कि ट्यूलिप गार्डन का यह तीसरा वर्ष है. इस बार ट्यूलिप की 6 किस्मों के 50 हजार के करीब पौधे लगाए गए हैं. उन्होंने कहा कि भविष्य में लेह में भी ट्यूलिप गार्डन को शुरू कर दिया जाएगा, वहीं राम लला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में भी यहीं से ट्यूलिप के 300 फूल भेजे गए थे.


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