बांदीपोरा: एक तरफ जहाँ लोग ज़ात-पात और मज़हब के नाम पर एक दूसरे के दुश्मन हुए जा रहे हैं वहीं जम्मू कश्मीर के बांदीपुरा के मुसलमानों ने हम आहंगी के मिसाल पेश की है जिसकी हस शख्स ने तारीफ की है.दरअसल बांदीपोरा के अजर में रहने वाली एक कश्मीरी पंडित प्यारे लाला की वालिदा जय किशोरी ने 21-22 जनवरी की शब आखिरी सांस ली.पंडिय कुंबे के मुसलमान पडोसियों को जब इस की इत्तेला मिली तो वो सब इस दुख की घड़ी में प्यारे लाल के घर गए.


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अजर के इलाक़े में तक़रीबन एक दर्जन पंडित रहाइश पज़ीर हैं. जिंहोंने 1990 के हालात के पेशेनज़र भी वादी को नहीं छोड़ा. जय किशोरी के इंतेक़ाल के बाद उनके पड़ोसी मुसलमानों ने फिरक़ावाराना हमअहंगी, तहज़ीबी सक़ाफ़त और इंसानियत का सूबूत देते हुए मय्यत की अख़िरी रुसूमात की तैयारी की और खुद भी कांधा दे कर शम्शान घाट तक ले गए और आख़िरी रुसूम भी अदा कीं वालिदा के इंतेक़ाल से कश्मीरी पंडित प्यारे लाल बहुत दुखी थे और बर्फ़बारी के मौसम ने उनकी परेशानी मे मज़ीद इज़ाफा कर दिया था. इस वादी में उन्होंने अपनी ज़िंदगी गुज़ार दी और यहां के मुसलमानों की मुहब्बत 


और हमआहंगी की कोशिश की वजह से उन्हें कश्मीर छोड़ने की ज़रुरत महसूस ही नहीं हुई. उनके पड़ोसी इस दुख की घड़ी में भी उनके साथ हैं और आखिरी रुसूमात की अदाएगी में मदद की प्यारे लाल को पुरसा देने बांदीपोरा के बीजेपी के ज़िला सद्र शैख वसीम बारी पहुंचे और उनहोंने हर वक़्त मदद फ़राहम करने का वादा भी किया. प्यारे लाल की वालिदा के इंतेक़ाल की ख़बर से बांदीपोरा की इंतेज़ामिया भी साथ खड़ी नज़र आई और हर मुम्किन मदद फ़राहम की. बांदीपोरा के एडीसी, डीएफ.ओ ने भी मुलाक़ात की.मौजूदा हालात के पेशेनज़र वादी में इस तरह की हमआहंगी और इंसानियत की मिसाल हकीकत में लायक़े दीद और लायक़े तहसीन है गंगाजमूनी तहज़ीब की असल रुह तो यही है जिस की मिसाल हमें बांदीपोरा में देखने को मिली.