Birth Anniversary: ख्वाजा अहमद अब्बास की वह वसीयत जिसे पढ़कर लाखों आखें हो गई थीं नम
Khwaja Ahmad Abbas Birth Anniversary: ख्वाजा अहमद अब्बास सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक आधार पर सबकी समानता की बात करते थे. वह हर क्षेत्र में प्रगतिशीलता की तरफदारी करने वाले थे.
नई दिल्ली: अपनी रचनात्मकता से समाज को एक खास संदेश देने वाले ख्वाजा अहमद अब्बास, एक संवेदनशील फिल्मकार होने के साथ-साथ उर्दू के प्रसिद्ध लेखक और अंग्रेजी के एक चर्चित पत्रकार भी थे. साथ ही कुशल पटकथा लेखक और एक सफल निर्माता भी थे. लेकिन इन सबसे बढ़कर वह एक प्रगतिशील इंसान थे, जो मोहब्बत और मानवता को अपनी कृतियों में भरपूर प्रश्रय देते थे. फिल्मों के कथानक के माध्यम से वह मानव मन को रुपहले पर्दे पर उकेरते थे. उन्होंने समकालीन मुद्दे जैसे गरीबी, बेरोजगारी,सामंतवाद,अस्पृश्यता और संप्रदायिकता आदि को अपनी रचना के केंद्र में रखा. प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरूजी के घोर प्रशंसक ख्वाजा अहमद अब्बास नेहरूवादी समाजवाद खासे पैरोपकार थे. वह नेहरुजी की भांति सामाजिक बदलाव के बहुत बड़े हिमायती थे.
ख्वाजा अहमद अब्बास सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक आधार पर सबकी समानता की बात करते थे. वह हर क्षेत्र में प्रगतिशीलता की तरफदारी करने वाले थे. उन्होंने अपनी कला को एक सशक्त माध्यम बनाकर आजादी के बाद लोगों के मन में एक नयी उम्मीद जगाने का कार्य किया. इसी नवआकांक्षा ने समाज में एक प्रगतिशील धडा़ तैयार किया, जिसमें समाज के सभी वर्गों की बराबर की हिस्सेदारी थी. ईप्टा के संस्थापक सदस्यों में से एक ख्वाजा अहमद अब्बास ने कैफ़ी आज़मी, बलराज साहनी, साहिर लुधियानवी ,राज कपूर ,शैलेंद्र, प्रदीप, पंडित रविशंकर, उत्पल दत्त ,बलराज साहनी,दीना पाठक, ए .के. हंगल,शंभू मित्रा और हबीब तनवीर आदि के साथ देश में सांस्कृतिक चेतना जगाने में अहम भूमिका अदा की. साथ ही यह प्रेमचंद,सज्जाद जहीर,कृश्न चंदर और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ आदि से भी जुड़ गहरे रूप में जुड़े थे.
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व्यक्तिगत जीवन
ख्वाजा अहमद अब्बास का जन्म 7 जून 1914 को हरियाणा के पानीपत में हुआ था. इनके पिता गुलाम-उस-सिबतैन और मां मसरूर खातून थी. इन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में 1933 में बी.ए. और 1935 में एलएलबी की शिक्षा पूरी की. इनका विवाह मुज़्तबी बेगम के साथ हुआ था. 1 जून 1987 को 72 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया.
आरम्भिक जीवन
एक पत्रकार के रूप में अलीगढ़ ओपिनियन से अपना कैरियर शुरू कर बांम्बे क्रॉनिकल में लंबे समय तक फिल्म समीक्षक रहें. इनका कॉलम द लास्ट पेज सबसे लंबा चलने वाले स्तंभों में से एक गिना जाता हैं। इस कॉलम की लोकप्रियता इतनी थी कि, बांम्बे क्रॉनिकल के बंद हो जाने के बाद भी चर्चित पत्रिका बि्लटज में द लास्ट पेज कोई दशकों तक छपता रहा. बातचीत के अंदाज में छपने वाले इस सप्ताहिक कॉलम में हर समसामयिक ज्वलंत मुद्दे पर अपनी बेबाक राय रखते थे.
बतौर फिल्मकार
ख्वाजा अहमद अब्बास ने 1936 में बतौर लेखक बॉम्बे टॉकीज के लिए फिल्म नया संसार लिखा, उसके बाद उन्होंने एक से बढ़कर एक सफल फिल्में लिखीं. बाद में वह राज कपूर के साथ जुड़ गए. इसके बाद इस युगल जोड़ी ने सफलता के कई कीर्तिमान स्थापित कर दिए. राज कपूर की फिल्मों की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण ख्वाजा अहमद अब्बास की लिखी पटकथाएं भी होती थी. जागते रहो ,आवारा ,श्री 420 मेरा नाम जोकर ,बॉबी और हिना जैसी सफल फिल्में इनके ही कूंची से निकली हैं. इन्हीं फिल्मों ने राज कपूर को भारतीय सिनेमा का शोमैन बना दिया। अपनी फिल्मों के माध्यम से राज कपूर भारत के बाहर रूस में भी खासे लोकप्रिय हो गए और वहां उनकी फिल्में डब करके देखी जाने लगी
प्रमुख फिल्में
नया संसार, नीचा नगर ,आवारा ,श्री 420 ,आज और कल,डॉक्टर कोटनीस की अमर कहानी, धरती के लाल ,राही,परदेसी,दो बूंद और सात हिंदुस्तानी.
विवाद
वह सिनेमा को कला का सबसे सशक्त माध्यम मानते थे, उनके अनुसार किसी अन्य माध्यम के मुकाबले सिनेमा सामाजिक बदलाव लाने में सबसे ज्यादा प्रभावकारी था. सिनेमा की आलोचना करने पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को को पत्र लिखकर फिल्मों की महत्ता समझायी थी.
रचनाएं
ख्वाजा अहमद अब्बास ने हिंदी अंग्रेजी और उर्दू मिलाकर लगभग 70 से ज्यादा पुस्तकें लिखीं. इंकलाब आई एम नॉट एंड आयलैंड: एन एक्सपैरीमेंट इन ऑटो बायोग्राफी इनकी चर्चित रचना हैं. इसके अलावे इनके लेखों का संकलन दो किताबों आई राइट एज आई फील और बेड ब्यूटी एंड रिवोल्यूशन के रूप में आया.
पुरस्कार और सम्मान
ख्वाजा अहमद अब्बास को उनके रचनात्मक योगदान के लिए 1969 में इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. इसके अलावा इनकी फिल्म शहर और सपना को 1964 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला. मैक्सिम गोर्की की लोअर डेप्थ पर आधारित इनकी फिल्म नीचा नगरःद सिटी एज़ ए मेटाफर को अंतरराष्ट्रीय कान फिल्म समारोह में पाल्मे डी ओर पुरस्कार मिला. इसके अलावे इनको फिल्म फेयर पुरस्कार और गालिब पुरस्कार से भी इन्हें सम्मानित किया गया हैं.
और अंत
इनके ही बैनर तले बनी फिल्म सात हिंदुस्तानी से हिंदी फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन ने फिल्मी दुनिया में प्रवेश किया था. लोकप्रिय अभिनेता शाहिद कपूर की मां नीलिमा अजीम रिश्ते में इनकी पोती हैं.
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वसीयत में अहमद अब्बास ने क्या लिखा था
अपनी वसीयत में उन्होंने लिखा था,‘मेरा जनाजा यारों के कंधों पर जुहू बीच स्थित गांधी के स्मारक तक ले जाएं, लेजिम बैंड के साथ.अगर कोई खिराज-ए-अकीदत पेश करना चाहे और तकरीर करे तो उनमें सरदार जाफ़री जैसा धर्मनिरपेक्ष मुसलमान हो, पारसी करंजिया हों या कोई रौशनख्याल पादरी हो वगैरह, यानी हर मजहब के प्रतिनिधि हों. उन्होंने वसीयत में लिखा, ‘जब मैं मर जाऊॅंगा तब भी मैं आपके बीच में रहूंगा. अगर मुझसे मुलाक़ात करनी है तो मेरी किताबें पढ़ें और मुझे मेरे ‘आखिरी पन्नों’, ‘लास्ट पेज’ में ढ़ूढ़ें, मेरी फिल्मों में खोजें. मैं और मेरी आत्मा इनमें है. इनके माध्यम से मैं आपके बीच, आपके पास रहूंगा, आप मुझे इनमें पाएंगे.’
-ए. निशांत
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.
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