Bhupinder Singh Death: बॉलीवुड के दिग्गज सिंगर भूपेंद्र सिंह (Bhupinder Singh) का सोमवार की शाम 7 बजे मुंबई के एक अस्पताल में 82 साल की उम्र में निधन (Passed Away) हो गया. उनकी कोई संतान नहीं है, पत्नी मिताली सिंह ने उनके निधन की जानकारी दी है. भूपेंद्र सिंह की पत्नी मिताली सिंह भी एक सिंगर हैं. भूपेंद्र भले ही अब हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन वह अपने गीतों और गजलों  की वजह से देशवासियों के बीच हमेशा रहेंगे. भूपेंद्र (Bhupinder Singh) एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार थे.


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कहा जाता है कि संगीत और गीत की शुरुआती शिक्षा भूपेंद्र ने बचपन में अपने पिता प्रोफेसर नत्था सिंह से ली थी, लेकिन उनके पिता एक बहुत ही सख्त मिज़ाज टीचर थे. कहा जाता है कि वह शुरुआत में अपने पिता की सख्ती की वजह से संगीत की तालीम लेने से इंकार करते हुए इसे छोड़ कर भाग गए थे. यहां तक कि उन्हें संगीत सीखने से एक तरह की नफरत-सी हो गई थी. लेकिन बाद में वह एक ऐसे कलाकार बने जिनके गीत सदियों तक भारत की इस भूमि के साथ ही दुनिया भर में अपने चाहने वालों के बीच गूंजती रहेगी. 


भूपेंद्र सिंह गीत और गजल गाने के साथ कई तरह के वाद्य यंत्र बजाने में भी महारत हासिल रखते थे. उनकी आवाज बिल्कुल अल्हदा किस्म की थी, जो गायकों के भीड़ में भी उन्हें अलग पहचान देती थी. उनकी खनकती और मखमली आवाज मोनो कानों में रस घोल देती है. काफी दिनों से उन्होंने नए फिल्मों में गाने नहीं गाए थे, लेकिन उनके जो भी गाने हैं, वह एक खास अंदाज में गाए गए हैं, जिन्हें सुनने वाला इंसान तन और मन दोनों से हरा हा जाता है! 


'किनारा’ फिल्म का लता जी के साथ भूपेंद्र का गाना  'नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा’ भला कौन भूल सकता है. 'ऐतबार’ फिल्म का आशा भोंसले के साथ 'किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है’, ‘मासूम’ फिल्म में सुरेश वाडकर के साथ उनका गाना 'हुजूर इस कदर न इतरा के चलिए, सरेआम यूं न आंचल लहरा के चलिए’ गाने आज भी आशिकों के मुंह में अपने महबूब की तारीफ में कहे जाने वाले अल्फाज भर देते हैं. भूपेंद्र जब 'मासूम’ फिल्म में 'दिल ढूंढता है फिर वही, फुरसत के रात दिन’ गाना लता जी के साथ गाते हैं, तो ऐसे गाने संगीत प्रेमियों के लिए हमेश-हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं.  


'घरौंदा’ फिल्म में जब वह रूना लैला के साथ 'दो दीवाने इस शहर में आशियाना ढूंढते हैं’ गीत को अपनी आवाज देते हैं, तो ये गाना उन तमाम लोगों को अपने लगने लगते हैं, जो किसी शहर में नए-नए हों और वहां रहने के लिए एक आशियाने के साथ किसी के दिल में भी ठिकाने की तलाश कर रहे हों. 


'बाजार’ फिल्म का गाना 'करोगे याद तो हर बात याद आएगी’ मोनो भूपेंद्र सिंह पर ही फिट बैठ रहा है, जैसे आज उन्हें याद करके उनकी हर एक बात याद आ रही है. 


'कहकशां’ फिल्म में भूपेंद्र का आशा भोंसले के साथ गाया गाना 'आज जाने की जिद न करो, यूं ही पहलु में बैठे रहो’ कालातीत हो जाता है. यह हर दौर में प्रेम में डूबे दो शख्स के एहसास की तर्जुमानी करता रहेगा, जो काफी दिनों बाद आपस में मिले हों और किन्ही मजबूरियांं के तहत उन्हें एक दूसरे से जुदा होना पड़ रहा हो.


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गुलशन कुमार की फिल्म 'बेवफा सनम’ का वो मशहूर गाना भला कौन भूल सकता है, जिसमें भूपेंद्र ने गाया है 'दर्द तो रुकने का अब नाम नहीं लेता है, सब्र से अब दिल भी मेरा काम नहीं लेता है.’’


भूपेंद्र ने न सिर्फ प्रेम और विरह के गाने गाए हैं बल्कि उन्होंने देशभक्ति से ओतप्रोत भी कई गीत गाए हैं, जिसे सुनकर हर हिन्दुस्तानी का दिल देश प्रेम के जज्बे से भर उठता है. 'शहीद’ फिल्म में मोहम्मद रफी के साथ गाया उनका गाना ’सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है, बेहद मशहूर है, जिसे सुनना हर हिन्दुस्तानी अवाम को  देशभक्ति से लबरेज कर देता है. 'शहीद’ फिल्म के ही एक दूसरे गाने ’मेरा रंग दे बसंती चोला’ देश के हर नौजवानों का आजादी और इंकलाब का मतलब समझा देता है. भूपेंद्र की खनकदार आवाज में गाया गया यह गाना देश की आन-बान और शान पर नौजवानों को मर- मिटने के लिए प्रेरित कर देता है. 


भूपेंद्र के गानों की फहरिश्त काफी लंबी है, जो जिंदगी के हर एक मोड़ और लम्हें को समझने और जीने में हमारी मदद करते हैं. उनके गानों में जिंदगी के तमाम गूढ़ फलसफों के जवाब छिपे हैं, जिसे सुनकर हम उम्मीदों से भर उठते हैं. भले ही भूपेंद्र जाने की जिद कर हमसे बिछड़ गए हैं, लेकिन उनके मधुर, कर्णप्रिय और सबक आमेज गाने हमारे बीच हमेशा के लिए जिंदा रहेंगे और भूपेंद्र की याद हमें दिलाते रहेंगे. अलविदा भूपेंद्र...  


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