Ajmer News: राजस्थान के अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर झंडा चढ़ाने के साथ उनके 813वें उर्स का शनिवार को आगाज हो गया. भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी के परिवार ने ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह स्थित ऐतिहासिक बुलंद दरवाजे पर झंडे की रस्म को पूरा किया. झंडे की रस्म के दौरान हजारों की संख्या में अकीदतमंद मौजूद रहे.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

दरगाह के खादिम ने क्या कहा?
दरगाह के खादिम हसन हाशमी ने आईएएनएस से खास बातचीत में उर्स के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया, "गरीब नवाज की दरगाह में सदियों से झंडा चढ़ाए जाने की रस्म अदा की जा रही है. इसी के तहत आज भी बुलंद दरवाजे पर झंडा फहराया गया और इसे गौरी परिवार ने पूरा किया है."


सभी की मन्नत होती है पूरी
उन्होंने आगे कहा, "यह मन्नत का झंडा है जो लंबे समय से ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में हर साल चढ़ाया जाता है. आज से उर्स की शुरुआत हो चुकी है। हम ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह से यही संदेश देते हैं कि चाहे वह किसी भी धर्म से क्यों न हो. हमारा यही मानना है कि वह यहां आए और अपनी मुराद पूरी करे."


कौन पूरा करता है दरगाह पर झंडे की रस्म 
दरअसल, ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर झंडे की रस्म को भीलवाड़ा का गौरी परिवार पूरा करता है. गौरी परिवार के अनुसार, यह परंपरा काफी साल से चली आ रही है. साल 1928 से फखरुद्दीन गौरी के पीर-मुर्शिद अब्दुल सत्तार बादशाह ने झंडे की रस्म को शुरु किया था. इसके बाद 1944 से उनके दादा लाल मोहम्मद गौरी को यह जिम्मेदारी सौंपी गई. उनके निधन के बाद साल 1991 से उनके बेटे मोईनुद्दीन गौरी ने इस रस्म को निभाया. हालांकि, साल 2007 से फखरुद्दीन गौरी इस रस्म को अदा कर रहे हैं.


बताया जाता है कि सालों पहले जब बुलंद दरवाजे पर झंडा चढ़ाया जाता था तो यह झंडा आस-पास के गांवों तक नजर आता था. हालांकि, वक्त के साथ आबादी बढ़ती चली गई और मकानों के बनने से यह नजारा कम ही दिखाई देता है.