Lucknow News: उत्तर प्रदेश के लखनऊ में गुरुवार को मदरसे को लेकर अहम कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया, जिसमें प्रदेश भर के मदरसे से लगभग 5 हज़ार से ज्यादा टीचर शामिल हुए. लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में मदरसों से जुड़ी समस्याओं को लेकर हुए इस कॉन्फ्रेंस में अल्पसंख्यक मंत्री ओमप्रकाश राजभर और पूर्व अध्यक्ष डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद ने भी शिरकत की.


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कॉन्फ्रेंस का मकसद यूपी में मदरसा एजुकेशन से जुड़ी अलग- अलग समस्याओं पर गहन बातचीत करना था. इस बैठक में मदरसा टीचर्स की समस्याओं का समाधान निकालने और मदरसा एजुकेशन को मजबूत बनाने के लिए अहम बातों पर चर्चा हुई. इस दौरान मदरसा शिक्षा को और बेहतर बनाने के लिए नई नीतियों पर चर्चा की गई. साथ ही आलिम और फाजिल की डिग्री को मान्यता देने को लेकर भी एक यूनिवर्सिटी से जोड़ा जाए इस पर भी अल्पसंख्यक मंत्री को ज्ञापन दिया गया. इसके अलावा टीचर्स की सैलरी से जुड़ी परेशानियों पर शिक्षकों मंत्री राजभर का ध्यान आकर्षित किया. 


अल्पसंख्यक मंत्री ने क्या कहा?
कॉन्फ्रेंस में अल्पसंख्यक मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने खिताब करते हुए बताया कि मदरसा टीचर्स और मदरसा शिक्षा से जुड़े अन्य हितधारकों की समस्याओं को समझकर उनकी समस्याओं का समाधान किया जाए. इस दौरान उन्होंने कहा कि मैंने पहले भी कहा था कि एक यूनिवर्सिटी खोला जाए, जिससे सभी मदरसों को जोड़ा जाए.  उन्होंने आलिम और फाजिल की डिग्री को लेकर कहा कि ये दोनों डिग्रियां आज सबसे बड़ा मुद्दा है. इन दोनों डिग्रियों को लेकर मेरी कोशिश है कि एक यूनिवर्सिटी बनाया जाए ताकि बच्चों का भविष्य खराब ना हो.


कामिल और फाजिल सर्टिफिकेट
उल्लेखनीय है कि हाल ही में यूपी सरकार ने ऐलान किया था कि मदरसा एक्ट में अहम अमेंडमेंट किए जाएंगे. दरअसल, इस अमेंडमेंट के तहत कुछ मदरसा डिग्रियों को एक्ट के दायरे से बाहर किया जाएगा. खास तौर पर, कामिल और फाजिल सर्टिफिकेट देने वाले मदरसों को अब मान्यता नहीं दी जाएगी. इस लेकर शासन लेवल पर एक विस्तृत प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है.


मदरसा कानून क्या है?
यूपी में मदरसा एजुकेशन को सुव्यवस्थित और संरचित करने के मकसद से 2004 में एक खास कानून बनाया गया, जिसे यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट के नाम से जाना जाता है. इस कानून के तहत यूपी मदरसा बोर्ड की स्थापना की गई, जिसका मुख्य मकसद राज्य में चल रहे मदरसों की शिक्षा को मैनेज्ड और नियुक्त करना है.


इस एक्ट में उर्दू, अरबी, फारसी, इस्लामिक स्टडीज, तिब्ब (यानी पारंपरिक चिकित्सा), और दर्शनशास्त्र जैसी पारंपरिक इस्लामी तालीम को साफ तौर से परिभाषित किया गया है. यह कानून मदरसों को सिलेबस के मुताबिक संचालित करने का ढांचा प्रदान करता है, ताकि मजहब और कल्चरल स्टडीज के साथ-साथ मॉडर्न एजुकेशन का भी समावेश किया जा सके. प्रदेशभर में करीब 25,000 मदरसे हैं, जिनमें से करीब 16,000 मदरसों को यूपी मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है. 


कामिल और फाजिल की डिग्री पर क्या बोले टीचर्स?
कॉन्फ्रेंस में पहुंचे टीचर्स ने अपनी समस्याओं को बताया के शिक्षकों ने बताया कि कामिल और फाजिल की डिग्री को मान्यता दी जाए. वहीं, कुछ टीचर्स ने कहा कि जो सैलेरी वक्त पर नहीं आती है उसका निस्तारण सरकार को करना चाहिए.  सरकार को लेकर कुछ टीचर्स ने कहा सरकार अच्छा काम कर रही है. हमें उम्मीद है की मदरसों को लेकर कामिल और फाजिल की डिग्री को यूनिवर्सिटी से जोड़ने का काम सरकार जल्द करेगी.