इसी महीने 28 तारीख को इस्लाम धर्म के आखिरी पैगम्बर मोहम्मद स. की पैदाइश का दिन है. इस दिन अरबी तारीख 12 रबीउल अव्वल 1445 हिजरी पड़ रही है. इसी दिन साल 570 ई. को प्रोफेट मोहम्मद स. दुनिया में तशरीफ लाए थे. इस दिन को पूरी दुनिया के मुसलमान बड़ी धूमधाम से मनाते हैं. इस दिन मुसलमान उनकी याद में नात पढ़ते हैं. कुरानखानी कराते हैं. कुछ जगहों पर रैली निकालते हैं. हालांकि, दुनिया में ऐसी बहुत से मुसलमान हैं जो मोहम्मद स. की पैदाइश या उनकी पुण्यतिथि पर कोई आयोजन नहीं करते हैं. उनका तर्क है की मोहम्मद स. की पैदाइश की तारीख तय नहीं है. उनके वफात की तारीख पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन फिर भी इसे सेलिब्रेट करने का इस्लाम में कोई प्रावधान नहीं है. बहुत से उलेमा का कहना है कि मोहम्मद स. ने अपनी ज़िन्दगी में कभी अपना जन्मदिन नहीं मनाया, जबकि उनके अनुयायी यानी सहाबा ऐसा करना चाहते थे. जिसके जवाब में उन्होंने कहा था कि इससे समाज में एक गलत रिवायत कायम होगी. अमीर और प्रभावशाली लोग अपना जन्मदिन मनाने लगेंगे जबकि गरीब इंसान ऐसा न कर पाने पर दुखी होगा. प्रोफेट मोहम्मद स. से जुड़े बहुत से वाकिए हैं. इन्हीं वाकियों में से एक है, उनका सऊदी के मक्का शहर से मदीना शहर जाना. तभी से हिजरी सन की शुरुआत हुई थी. आज हम इसी के बारे में बात करेंगे.


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हिजरत क्या है?


प्रोफेट मोहम्द की पैदाईश के 40 साल के बाद नबूवत मिली, यानी उन्हें पैग़म्बर बनाया गया. प्रोफेट मोहम्मद स. का अपने साथियों के साथ मक्का शहर छोड़कर यथरिब (मदीना) की तरफ जाना हिजरत कहलाता है. जानकारों के मुताबिक यह वाकिया 622 ई. को जून के महीने में हुआ था. यहीं से अरबी कैलेंडर हिजरी सन की शुरूआत हुई. जब प्रोफेट मोहम्मद स. मक्का से मदीना की तरफ जा रहे थे तो उनके साथी उनके साथ थे.


प्रोफेट मोहम्मद स. के दुश्मन


मक्का में प्रोफेट मोहम्मद स. के कई दुश्मन थे. उनको लग रहा था कि प्रोफेट मोहम्मद स. पूरे अरब में इस्लाम फैला देंगे. इसलिए उन्होंने प्रोफेट मोहम्मद का कत्ल करने का प्लान बनाया. नबी के कई दुश्मन नंगी तलवार लेकर उनको ढूंढने लगे.


अपने बिस्तर पर अली को सुलाया


प्रोफेट मोहम्मद स. को जब यह बात पचा चली तो उन्होंने अपने बिस्तर पर हजरत अली को सुला दिया और वह खुद मक्का के लिए रवाना हो गए. जब सुबह प्रोफेट मोहम्मद स. के बिस्तर से हजरत अली र. उठे तो प्रोफेट मोहम्मद स. के दुश्मन हैरान हो गए. 


इस्लाम का पैगाम दिया


प्रोफेट मोहम्मद स. ने मदीना पहुंचकर यहां से इस्लाम का पैगाम देने का काम शुरू किया. मक्का के मुशरिक (मूर्तीपूजक समाज) मुसलमानों को सताते थे. दीन के काम में मुश्किलें पैदा करते थे. लेकिन अब दीन के काम के लिए मरकज बदल गया. यहां से दीन का काम करना आसान हुआ. 


52 साल की उम्र में की हिजरत


जब प्रोफेट मोहम्मद स. मक्का छोड़कर मदीना पहुंचे उस वक्त उनकी उम्र साल 622 ई. में 52 साल थी. प्रोफेट मोहम्मद को 40 साल की उम्र में 610 ई. में नबूवत मिली. इस तरह से प्रोफेट मोहम्मद मक्का में नबी बनने के बाद 13 साल तक रहे और इस्लाम की दावत देते रहे.


प्रोफेट मोहम्मद की वफात


630 ई. में प्रोफेट मोहम्मद अपने साथियों के साथ दोबारा मक्का में लौटे. इसके बाद यहां भी लोग बड़ी तादाद में इस्लाम को अपनाया. तभी प्रोफेट मोहम्मद ने काबा से मूर्तियों और तस्वीरों को हटाया. लोगों को सिर्फ एक ईश्वर की पूजा करने के लिए कहा. इसके बाद मदीना शरीफ में 8 जून 632 को प्रोफेट मोहम्मद स. ने वफात पाई.


स्रोत - जगत-गुरू, एम.एम.आई पब्लिशर्स, लेखक अबू-खालिद अनुवाद नाहीद अखतर. 
https://www.pbs.org/wgbh/pages/frontline/teach/muslims/timeline.html#:~:text=610%20C.E.%20According%20to%20Muslim,that%20he%20is%20God's%20prophet.