Islamic News: मौलवी, आलिम, हाफिज, कारी, मुफ्ती, इमाम और काजी अक्सर ये शब्द आप सुनते और पढ़ते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि ये कौन होते हैं, और इनका क्या काम होता है? अक्सर दूसरे धर्म के लोग किसी मौलवी को पंडित या पुरोहित के समकक्ष मान लेते हैं, लेकिन इस्लाम में पुरोहित या पंडितई का काम किसी खास धार्मिक पेशेवर व्यक्ति को नहीं सौंपा गया है. एक आम मुसलमान वह सभी काम कर सकता है, जो एक मौलवी या इमाम कर सकता है. इसके बावजूद सभी का अपना-अपना काम और महत्व है. हम आज इन सभी नामों और उनके कामों पर विस्तार से चर्चा करेंगे.


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मौलवी
मौलवी एक अरबी शब्द है, जो इस्लाम धर्म के धार्मिक मामलों के जानकार लोगों को दिया जाने वाला एक इस्लामिक नाम है. हालांकि, किसी भी दाढ़ी-टोपी और कुर्ता पाजमा पहने हुए धार्मिक मामलों के जानकार लोगों को मौलवी नहीं मान लिया जाता है. मौलवी एक शैक्षणिक योग्यता का नाम है. मदरसों में जो लोग पढ़ाई करते हैं, उन्हें मौलवी की उपाधि दी जाती है. यह उपाधि आम तौर पर हायर सेकेंड्री स्कूलों के 12वीं के समकक्ष होता है. यानी मदरसों से अरबी, हिंदी, उर्दू के साथ इस्लामिक अध्ययन करने वाले लोग मौलवी या मौलाना कहलाते हैं. इनका काम लोगों को धार्मिक मामलों की शिक्षा देना होता है. 


आलिम
आलिम भी एक अरबी शब्द है, जिसका लफ्जी मानी होता है, वैसा शख्स जिसे किसी बात का इल्म हो यानी जो ज्ञानवान हो. आलिम के बहुवचन या प्लुरल फॉर्म को उलेमा कहते हैं. इसकी पढ़ाई भी मदरसों में होती है और इसे कॉलेज और यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएशन के समकक्ष माना जाता है. ये भी इस्लाम, कुरान, हदीस और मसले के जानकार होते हैं. ये पद और ज्ञान के मामले में मौलवी या मौलाना से उच्च माने जाते हैं. 


मुफ़्ती 
मुफ्ती शब्द अरबी भाषा का शब्द है. ये इफ्ता से बना है, जिसका मतलब है कि न्याय या इंसाफ करने वाली संस्था. मुफ्ती एक पद होता है, जो इस्लामिक नियम और कानून के हिसाब से किसी धार्मिक या सामाजिक विषय पर अपनी राय देता है. भारत का कानून सीआरपीसी और आईपीसी के साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ को मान्यता देता है. कई राज्यों में दारूल इफता और दारूल कजा स्थापित है, जहां मुस्लिम शादी-बयाह और धार्मिक मामले लाए जाने पर उस मसले या केस की धार्मिक व्याख्या की जाती है, जिसे फतवा कहते हैं. मुफ्ती को धार्मिक और समाजिक मामलों के साथ इस्लामिक ज्यूरिस्प्रूडेंस का एक्सपर्ट माना जाता है. मुफ्ती की पढ़ाई आलिम के बाद होती है. लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि किसी भी मौलवी, आलिम या दाढ़ी-टोपी वाले मुसलमान को कोई भी बयान फतवा नहीं होता है. फतवा किसी धार्मिक विषय पर सिर्फ आधिकारिक संस्था और व्यक्ति ही जारी कर सकता है. 
  
काजी 
काजी एक उर्दू और फारसी का लफ्ज़ है, जिसका मतलब होता है, मुंसिफ, नयायाधीश या इंसाफ करने वाला शख्स. काजी आमतौर पर शरिया अदालतों का हेड होता है, जो धार्मिक मसलों पर फैसला देता है. काजी शरिया अदलतों में एक मजिस्ट्रेट या रजिस्ट्रार की भी भूमिका निभाता है, जो मुस्लिम जोड़ों की शादियों का रजिस्ट्रेशन कर उसे कानूनी वैधता प्रदान करता है. इसलिए एक कहावत भी बेहद मशहूर है, ’मियां-बीवी राजी तो क्या करेंगे काजी’. काजी बनने  के लिए भी मुफ्ती होने के साथ इस्लामी न्यायशास्त्र का ज्ञाता होना अनिवार्य शर्त होता है. हालांकि, ये जरूरी नहीं है कि काजी ही मुस्लिम जोड़ों का निकाह पढ़ता हो. निकाह एक मौलवी, आलिम, या हाफिज के साथ कोई भी मुसलमान इस कार्य को अंजाम दे सकता है. 


हाफिज़ 
हाफिज अरबी शब्द हिफ्ज़ से बना है, जिसका मतलब होता है किसी चीज को याद करना. हाफिज उस शख्स को कहते हैं, जिसे पूरी कुरान याद हो. हालांकि, इसमें ये शर्त नहीं है कि उसे कुरान याद होने के साथ उसे उसका अर्थ भी पता हो. एक हाफिज से धार्मिक मामलों में बहुत ज्यादा किसी विशेष ज्ञान की उम्मीद नहीं की जाती है. वह कुरान याद करने के साथ सिर्फ इस्लाम की मौलिक बातों से ही परिचित होते हैं. हाफिज का खास काम रमजान के महीने में कुरान सुनाना होता है, जिसे तरावीह की नमाज कहते हैं. 


कारी 
कारी हाफिज का एक रिफाइंड वर्जन होता है. हाफिज बनने के बाद कुरान को शुद्ध उच्चरण और लय के साथ पढ़ने वाला शख्स कारी कहलाता है. अक्सर आपने देखा और सुना होगा कि इंग्लिश बोलने और पढ़ने वाले अक्सर इंग्लिश का गलत उच्चारण करते हैं. शुद्धता के साथ किसी भी शब्दों का उच्चारण करने में कठिनाई होती है. कुछ लोग फोनिटिक के साथ इंग्लिश बोलते हैं. वैसे ही अरबी भाषा में लिखी गई कुरान को शुद्धता के साथ पढ़ना और उच्चरण करना एक अभ्यास के बाद संभव हो पाता है. जो हाफिज इस कला में पारंगत हो जाते हैं, उसे कारी कहते हैं. 


इमाम
इमाम भी एक अरबी शब्द है. इसका मतलब होता है नेतृत्व करना. सही रास्ता दिखाना. आमतौर पर इमाम उस शख्स को बोला जाता है, जो किसी मस्जिद में पांच वक्त की नमाज पढ़ाता हो. मस्जिदों में जब सामूहिक रूप से नमाज होती है, तो उसमें एक इंसान नमाज पढ़ाता है, बाकी नमाजी उसके पीछे खड़े होते हैं. इमाम होने के लिए किसी खास योग्यता की शर्त नहीं रखी गई है. सिर्फ इतना कहा गया है कि सामूहिक रूप से जब नमाज पढ़ी जाए, तो उन नमाजियों में मौजद जो धार्मिक तौर पर सबसे अच्छा, संस्कारी, परहेजगार, और ज्ञानी हो उसे इमाम बनना चाहिए.. इसके बावजूद मस्जिदों में हाफिज, कारी, मौलवी, आलिम, और मुफ्ती तक इमाम बनते हैं और नमाज पढ़ाने का काम करते हैं. इसमें कोई बंदशि लागू नहीं होती है.