Afghanistan News: अफगानिस्तान में एक के बाद एक तालिबानी फरमान जारी हो रहे हैं. तालिबान के इस फरमान से सबसे ज्यादा महिलाएं प्रभावित हो रही हैं. इस बीच तालिबान ने एक और फरमान जारी किया है. जिसकी चर्चा चारों तरफ हो रही है. दरअसल तालिबान के सुप्रीम लीडर ने रसोई, आंगन और कुओं से सटे घरों में खिड़कियां बनाने पर प्रतिबंध लगा दिया है. यानी उन सभी जगहों पर खिड़कियां नहीं बनाई जा सकतीं जहां आमतौर पर महिलाएं इकट्ठा होती हैं या काम करती हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

इन जगहों पर रोक
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, तालिबान सरकार के प्रवक्ता की तरफ से 28 दिसंबर देर रात जारी एक बयान के मुताबिक, नई इमारतों में ऐसी खिड़कियां नहीं होनी चाहिए, जिनसे 'आंगन, रसोई, पड़ोसी का कुआं या आमतौर पर महिलाओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली अन्य जगहों' को देखा जा सके.


सरकार के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद की ओर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किए गए फरमान के मुताबिक, “रसोई, आंगन में काम करने वाली महिलाओं या कुओं से पानी भरती महिलाओं को देखना 'अश्लील कृत्य' को जन्म दे सकता है.”


अधिकारियों को दिया गया है ये निर्देश
नगर निगम के अधिकारियों और अन्य संबंधित विभागों को निर्माण स्थलों की निगरानी करने का निर्देश दिया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी ऐसी खिड़की न बन सके जिससे पड़ोसी का घर दिखता हो. ऐसे मामलों में जहां ऐसी खिड़कियां पहले से मौजूद हैं. वहां प्रॉपर्टी मालिकों को पड़ोसियों को परेशानी से बचाने के लिए दीवारें बनाने या खिड़की को ब्लॉक करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में के बाद से देश में महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों से धीरे-धीरे हटा दिया गया है.


पहले भी लग चुके हैं कई प्रतिबंध
तालिबान अधिकारियों ने लड़कियों के लिए प्राइमरी एजुकेशन के बाद की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया है, रोजगार को प्रतिबंधित कर दिया है, पार्कों और दूसरे सार्वजनिक जगहों तक उनकी पहुंच को ब्लॉक कर दिया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हाल ही में एक कानून के तहत महिलाओं को सार्वजनिक रूप से गाने या कविता पाठ करने से भी रोक दिया गया है. यह कानून उन्हें घर के बाहर अपनी आवाज और शरीर को 'ढकने' के लिए कहता है.


कुछ स्थानीय रेडियो और टेलीविजन स्टेशनों ने भी महिलाओं आवाज का प्रसारण बंद कर दिया है. तालिबान प्रशासन का दावा है कि इस्लामी कानून अफगान पुरुषों और महिलाओं के अधिकारों की 'गारंटी' देता है.