New Delhi: Article 35A ने छीने लोगों के मौलिक अधिकार, सुप्रीम कोर्ट की जम्मू-कश्मीर पर बड़ी टिप्पणी
New Delhi: जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को निरस्त करने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है. कोर्ट में राज्य के इतिहास के पन्ने पलटे जा रहे है. धारा 35A पर सुनवाई करते हुए भारत के CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को बड़ी टिप्पणी की है.
New Delhi: जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. इस मामले में SC की पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है. कोर्ट में राज्य के इतिहास के पन्ने पलटे जा रहे है. सरकार के इस फैसले को एकतरफा बताया जा रहा है. धारा 35A पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को कहा, "अनुच्छेद 35A को लागू करके देश के किसी भी हिस्से में पेशे का प्रैक्टिस करने की स्वतंत्रता और दूसरे मौलिक अधिकार छीन लिए गए हैं."
14 मई 1954 को राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने जम्मू कश्मीर के लिए धारा 35A लागू किया था. धारा 35A जम्मू कश्मीर में धारा 370 का हिस्सा है. राष्ट्रपति के जरिए पास होने के बाद धारा 35A को संविधान में शामिल किया गया और इसके तहत जम्मू-कश्मीर से बाहरी राज्यों के लोग यहां संपत्ति या जमीन नहीं खरीद सकते हैं. इतना ही नहीं, 14 मई 1954 से राज्य में रहने वाले लोग ही, यहां के नागरिक माने गए. वहीं, 1954 से 10 साल पहले यहां रहने वाले लोगों को भी यहां का नागरिक माना गया. जम्मू-कश्मीर की लड़की अगर किसी बाहरी यानी दूसरे राज्य में शादी करती है, तो राज्य उसकी नागरिकता से जुड़े अधिकारों को खत्म कर देता है. इस प्रवधान के तहत राज्य के बाहर के लोग राज्य सरकार की नौकरी भी नहीं कर सकते हैं.
उन्होंने यह टिप्पणी तब की जब केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भारतीय संविधान के विवादास्पद प्रावधान का जिक्र करते हुए कहा, "यह पहले राज्य जम्मू-कश्मीर के केवल स्थायी मुकामियों को विशेष अधिकार देता है और यह भेदभावपूर्ण है." राज्य के दो राजनीतिक दलों का नाम लिए बिना केंद्र सरकार ने CJI चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ को बताया, "नागरिकों को गुमराह किया गया है कि जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष नियम 'भेदभाव नहीं बल्कि विशेषाधिकार' थे."
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संवैधानिक प्रावधान को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के 11वें दिन सॉलिसिटर जनरल ने SC को बताया, "आज भी दो राजनीतिक दल इस अदालत के सामने अनुच्छेद 370 और 35A का बचाव कर रहे हैं."
सॉलिसिटर जनरल ने आगे कहा, "अनुच्छेद 370 का प्रभाव ऐसा था कि राष्ट्रपति और राज्य सरकार के प्रशासनिक कानून के जरिए जम्मू-कश्मीर के संबंध में भारत के संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन और यहां तक कि खत्म नहीं किया जा सकता था. 42वें संशोधन के बाद 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं किये गए. जम्मू और कश्मीर संविधान ने अनुच्छेद 7 में जम्मू-कश्मीर के स्थायी बाशिंदों के लिए एक अलग प्रावधान किया गया है. इसने अनुच्छेद 15 (4) से अनुसूचित जनजातियों के संदर्भ को हटा दिया है, और दूसरे अनुच्छेद 19, 22, 31, 31ए और 32 को कुछ संशोधनों के साथ लागू किया गया."
उन्होंने कहा, "अनुच्छेद 35A भेदभावपूर्ण है. पूर्ववर्ती राज्य में दशकों से काम कर रहे सफाई कर्मचारियों जैसे लोगों को जम्मू-कश्मीर के स्थायी बाशिंदे की तरह समान अधिकार नहीं दिए गए थे. यह भेदभाव 2019 में प्रावधान निरस्त होने तक जारी रहा. जम्मू-कश्मीर के गैर-स्थायी मुकामी जमीन खरीदन नहीं सकते थे. राज्य सरकार में छात्रवृत्ति, रोजगार का लाभ नहीं उठा सकते थे." उन्होंने अदालत से मुद्दों पर गौर करने का दरख्वास्त किया है.
CJI चंद्रचूड़ ने मेहता की दलीलों को स्पष्ट करते हुए कहा, "अनुच्छेद 35A को लागू करके आपने समानता, देश के किसी भी हिस्से में पेशे का अभ्यास करने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों को छीन लिया और यहां तक कि कानूनी चुनौतियों से छूट और न्यायिक समीक्षा की शक्ति भी दी है."
सुप्रीम कोर्ट भी पहली नजर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र की इस दलील से सहमत हुई कि जम्मू-कश्मीर का संविधान भारतीय संविधान के अधीन है.
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