गुवाहाटी / सरीफुद्दीन अहमद: हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी एक रिपोर्ट में सिफारिश की है कि हिंदी को आईआईटी, आईआईएम, एम्स जैसे केंद्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में निर्देश का अनिवार्य माध्यम बनाया जाना चाहिए और अंग्रेजी की जगह हिंदी को दी जाए. इसमें यह भी सिफारिश की गई है कि हिंदी को सभी तकनीकी, गैर-तकनीकी संस्थानों और केंद्रीय विद्यालयों सहित केंद्र सरकार के संस्थानों में पढ़ाई का माध्यम बनाया जाए. 
इतवार को अमित शाह ने मध्यप्रदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई में हिंदी माध्यम से शुरू करने के लिए हिंदी किताबों को विमोचन भी किया है. एक तरफ सरकार हिंदी को जहां बढ़ावा देने की बात कर रही है, वहीं गैर-हिंदी भाषी प्रदेशों में हिंदी और इसके विकास को लेकर सरकार का रैवया बेहद उदासीन है. सरकार हिंदी को लेकर कुछ नहीं करती है. अगर आप को इस बात पर यकीन न हो तो असम के हिंदी माध्यम के स्कूलों का दौरा कर आईये. आप जान जाएंगे कि सरकार हिंदी को लेकर कितनी संवेदनशील है? 

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उपेक्षा का शिकार है ये हिंदी मीडियम स्कूल 
असम के कामरूप जिले के हिंदी माध्यम के स्कूल की हालत बेहद खराब है. यहां मूलभूत सुविधाओं का बेहद अभाव है. कामरूप (ग्रामीण) जिलांतर्गत रंगिया के एक नंबर वार्ड में स्थित बासुमति हिंदी प्राथमिक विद्यालय सालों से अपनी बदहाली और उपेक्षा पर आंसू बहा रहा है. यहां सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं है. साल में अधिकांश माह यहां स्कूल के अंदर जल जमाव की समस्या बनी रहती है. स्कूल के ग्रांउड से लेकर क्लासरूम तक में पानी भरा रहता है. छात्र इस पानी में चलकर आते हैं और पानी में ही बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर होते हैं.


क्लास में पानी भरे होने की वजह से छात्र नहीं आते हैं स्कूल 
असम में हिंदी माध्यम वाले स्कूलों की संख्या काफी सीमित होती है. इसके बावजूद सरकार इन स्कूलों पर ध्यान नहीं देती है. स्कूल की शिक्षका के मुताबिक, स्कूल में सौ से ज्यादा बच्चें नामांकित हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर बच्चे स्कूल की खस्ता हालत के कारण स्कूल नहीं आना चाहते हैं. कुछ बच्चों को उनके अभिभावक खुद स्कूल आने से मना करते हैं. इस वजह से बच्चां की पढ़ाई बाधित होती है. स्कूल की शिकक्ष ने बताया कि इस मामले में कई बार आला अधिकारियों को सूचना दी गई है, लेकिन इसपर कोई कार्रवाई नहीं होती है. टीचर रोजना स्कूल आते हैं, लेकिन बच्चों की अनुपस्थिति के कारण वह बेकार बैठकर चले जाते हैं. थोड़े-बहुत छात्र जो आते भी हैं, तो उनके बैठने, पढ़ने और खेलने-कूदने के लिए कोई इंतजाम नहीं है. इस वजह से स्कूल आने वाले छात्रों की भी पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाती है. 


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