लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लखनऊ की स्पेशल सीबीआई अदालत के हुक्म के खिलाफ दाखिल एक अपील को खारिज कर दिया है. जिसमें अहम भाजपा नेताओं एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह वगैरह पर 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के गिराने की कार्रवाई के पीछे मुजरिमाना साजिश रचने का आरोप है. जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की बेंच ने 31 अक्टूबर को फैसला महफूज़ रखने के बाद अपील खारिज कर दी.


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यह अपील अयोध्या के दो शहरियों, हाजी महमूद अहमद और सैयद अख़लाक़ अहमद ने दाखिल की थी, जिन्होंने दावा किया था कि उन्होंने 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचे को गिराया था.
उन्होंने याचिका में यह भी दावा किया था कि वे इस घटना के शिकार हैं क्योंकि उनके घर जला दिए गए थे.


यह अर्ज़ी 2021 में एक क्रिमिनल रिवीज़न पिटीशन के तौर पर दाखिल की गई थी. हालांकि 18 जुलाई, 2022 को, जब यह एकल जस्टिस के सामने सुनवाई के लिए आया, तो पटीशन दाखिल करने वाले/अपीलकर्ता की तरफ से पेश सीनियर वकील सैयद फरमान अली नक़वी ने अदालत के सामने पेश किया कि अनजाने में हुई गलती की वजह से अर्ज़ी को एक रिवीज़न पिटीशन के तौर पर पेश किया गया था.


पीड़ितों द्वारा यह भी तर्क दिया गया कि सीबीआई ने मामले की जांच की थी क्योंकि यह एक अहम जांच एजेंसी है, हालांकि, मामले में आरोपी लोगों के बरी होने के बाद, वह फौरी तौर पर अपील का विरोध कर रही थी जैसे कि एजेंसी आरोपी की कयादत (प्रतिनिधित्व) कर रही है.


पीड़ितों ने कहा, "एजेंसी ने आरोपियों की तरफ से बचाव का किरदार अदा किया है और पीड़ितों को न तो राज्य और न ही पुलिस और न ही सीबीआई से कोई मदद मिली है. इसके बावजूद पीड़ितों को प्रॉसिक्यूशन का काम पूरा करने के लिए छोड़ दिया गया था."