पटनाः पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने मंगलवार को शहरी स्थानीय निकाय चुनाव (municipal bodies election in Bihar) में राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग  (Backward Classes and Extremely Backward Classes) को सीटों पर मिल रहे आरक्षण को ‘अवैध’ (Reservation illegal) करार दे दिया है. मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति एस कुमार की बेंच ने राज्य चुनाव आयोग को ‘ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को फिर से अधिसूचित करके, उन्हें सामान्य श्रेणी की सीटों में तब्दील करके’ चुनाव कराने का आदेश दिया है. होईकोर्ट के इस आदेश से बिहार में चल रही चुनाव प्रक्रिया में बाधा पैदा हो सकती है. ?


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गौरतलब है कि नगर निकाय के चुनाव दो चरणों में 10 और 20 अक्टूबर को होने थे, जिसके परिणाम क्रमशः 12 और 22 अक्टूबर को घोषित किए जाने थे. एसईसी के मुताबिक, कुल मिलाकर 1.14 करोड़ मतदाताओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करना था.

हाईकोर्ट के फैसलों के अधीन होगी चुनावी प्रक्रिया 
इससे पहले 29 सितंबर के अपने पिछले आदेश में होईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि फिलहाल चल रही चुनावी प्रक्रिया अदालत के सामने विचाराधीन याचिका के नतीजों के अधीन होगी और अगर राज्य निर्वाचन आयोग कार्यक्रम में परिवर्तन करने की जरूरत समझे, तो वह ऐसा कर सकता है. राज्य निर्वाचन आयोग ने उसके बाद 30 सितंबर को सभी संबंधित जिलाधिकारियों को एक नोटिफिकेशन जारी कर कहा था कि प्रथम चरण का मतदान जो 10 अक्टूबर को तय है, उसकी निवाचन प्रक्रिया और नतीजे पटना हाईकोर्ट द्वारा समादेश उक्त याचिका में दिए फैसलों के अनुरूप होगा और उक्त आशय की सूचना सभी अभ्यर्थियों को भी दे दिए जाने को कहा था.

राज्य सरकार को नए सिरे से इसपर बनाना चाहिए कानून 
अदालत ने राज्य सरकार को यह भी सलाह दी है कि उसे स्थानीय निकायों, शहरी या ग्रामीण चुनावों में आरक्षण से संबंधित एक व्यापक कानून बनाने पर विचार करना चाहिए, ताकि राज्य को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के अनुरूप लाया जा सके.अदालत ने कहा, “बिहार राज्य ने कोई ऐसा अभ्यास नहीं किया है जिसके द्वारा सामाजिक-आर्थिक / शैक्षिक सेवाओं के तहत आरक्षण प्रदान करने के लिए अपनाए गए मानदंड को अत्यधिक पिछड़े वर्गों सहित अन्य पिछड़े वर्गों के चुनावी प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अपनाया गया है.’’  

ये भाजपा और केंद्र सरकार की साजिश का नतीजा हैः जदयू 
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद जद (यू) संसदीय बोर्ड के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने ट्वीट कर आरोप लगाया कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है.उन्होंने कहा है कि हाईकोर्ट का यह आदेश केंद्र और भाजपा की गहरी साजिश का नतीजा है. उन्होंने कहा, ’अगर नरेंद्र मोदी सरकार ने वक्त पर जातिगत जनगणना की होती और सभी संवैधानिक औपचारिकताओं को पूरा किया गया होता तो यह स्थिति नहीं होती. केंद्र और भाजपा की इस साजिश के खिलाफ जद (यू) आंदोलन शुरू करेगा. 

पीड़ित कार्ड खेल रहा है जदयूः भाजपा 
वहीं, राज्य भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद, जो ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव भी हैं, ने कुशवाहा पर पीड़ित कार्ड खेलने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा, ’नीतीश कुमार को लोगों का जवाब देना है कि बिना तैयारी के उन्होंने नगर निगम चुनाव प्रक्रिया क्यों शुरू की थी? उन्होंने आरक्षण की अनिवार्यता का पता लगाने के लिए एक स्वतंत्र आयोग का गठन क्यों नहीं किया ताकि कोटा न्यायिक जांच का सामना कर सके? उन्हें ओबीसी के अपमान के लिए दोषी ठहराया जाना चाहिए. 
 


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