Bombay High Court Whatsapp Status: बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर बेंच ने एक धार्मिक समूह के खिलाफ कथित तौर पर नफरत फैलाने वाली सामग्री पोस्ट करने के इल्जाम में एक शख्स के खिलाफ मामला रद्द करने से मना करते हुए कहा है कि किसी को अपने व्हाट्सएप स्टेटस के जरिए से दूसरों को कुछ बताते समय जिम्मेदारी की भावना के साथ व्यवहार करना चाहिए. जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस वाल्मिकी एसए मेनेजेस की खंडपीठ ने 12 जुलाई को अपने आदेश में कहा कि आजकल व्हाट्सएप स्टेटस का मकसद अपने राब्ते में रहने वाले लोगों को कुछ बताना होता है. बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि लोग अक्सर अपने कॉन्टैक्ट में रहने वालों का व्हाट्सएप स्टेटस चेक करते रहते हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


व्हाट्सएप स्टेटस पर बॉम्बे उच्च न्यायालय की प्रतिक्रिया
बेंच ने किशोर लांडकर नाम के शख्स के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर आहत करने से संबंधित आईपीसी की धाराओं, अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम और इन्फॉर्मेशन टैक्नालॉजी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज की गई थी. किशोर लांडकर ने रिपोर्ट रद्द करने की अपील करते हुए अर्जी दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया. इस मामले में कोर्ट ने कहा, व्हाट्सऐप स्टेटस, आप क्या कर रहे हैं, क्या सोच रहे हैं या आपने जो कुछ देखा है उसकी तस्वीर या वीडियो हो सकता है. यह 24 घंटे के बाद अपने आप हट जाता है. अदालत ने कहा कि, व्हाट्सऐप स्टेटस का मकसद किसी व्यक्ति द्वारा अपने जान-पहचान के लोगों तक कुछ बातें पहुंचाना होता है.



जिम्मेदारी से लगाएं व्हाट्सएप स्टेटस: HC 
अदालत ने कहा कि, यह और कुछ नहीं, बल्कि परिचित व्यक्तियों से संपर्क करने का एक उपाय है, इसलिए पूरी जिम्मेदारी से अपना व्हाट्सएप स्टेटस लगाएं. दूसरों को कोई बात बताते समय जिम्मेदारी की भावना से व्यवहार करना आवश्यक है. शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत में कहा था कि मार्च 2023 में आरोपी ने अपना व्हाट्सऐप स्टेटस अपलोड किया, जिसमें उसने एक सवाल लिखा और स्टेटस देखने वालों से चौंकाने वाले परिणाम जानने के लिए गूगल पर प्रश्न को सर्च करने को कहा. शिकायत में कहा गया है कि जब शिकायतकर्ता ने सवाल को गूगल पर खोजा, तो उसे धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली आपत्तिजनक सामग्री नजर आई.


Watch Live TV