रायसेन: रायसेन जिले (Raisen) में सेहरी और इफ्तार में तोपों के गोले दागने की प्रथा नवाब हमीदुल्ला खान के शासन के समय से चली आ रही है. ये तोप इसलिए चलाई जाती है, ताकि रोजा रखने वालों को सेहरी और इफ्तार के समय का पता चल सके.


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नवाबी काल में (The Nawab Period), ये तोप बड़ी हुआ करती थी और रायसेन के किले से चलाई जाती थी. जब भोपाल राज्य का भारतीय संघ में विलय हुआ, तो यहां रमजार के दौरान चलाने के लिए एक छोटी तोप रखी गई, फिर इसके लिए एक समिति बना कर इसका नियमित लाइसेंस जारी किया गया. यह तोप समिति अब जिला प्रशासन के अधीन है.


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यह तोप मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की शान है. इससे पहले, इस तरह से तोपों को दागने की प्रथा राजस्थान में भी प्रचलित थी, जो अब वहां बंद है. और अब पूरे भारत में, केवल मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में, सेहरी और इफ्तार के मौके पर तोपों के दागने की रिवायत है.


रायसेन (Raisen) जिले का एक काजी खानदान बरसों से सुबह सेहरे के वक्त और शाम को इफ्तार के वक्त इस तोप को चला रहा है. जब ये तोप चलती है कि उसकी आवाज 15 से 20 किलोमीटर के दायरे में सुनी जा सकती है और तोप की आवाज से इलाके में लोग सेहरी व इफ्तार करते हैं. 


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पहले इस तोप में बारूद का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन बारूद बनाने के लिए अब पटाखों के कुछ विस्फोटक को दाल और कोयले के साथ मिलाया जाता है.


गौतलब है कि ध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल (Bhopal) से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रायसेन जिला एक प्राचीन शहर है. इस प्राचीन शहर की स्थापना एक हजार साल पहले क्रिश्चियन किंग रायसिन ने की थी. बाद में, रायसेन जिला नवाबों के नियंत्रण में आ गया और भोपाल राज्य का हिस्सा बन गया.


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