Daag Dehlvi: दाग दहेलवी उर्दू के बेहतरीन शायर थे. उनका असली नाम नवाब मिर्जा खान था. इनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने उर्दू गजल को उसकी निराशा से निकाल कर मुहब्बत के तराने तक लाए. दाग दहेलवी ने उर्दू गजल को फारसी से निकाल कर उर्दू में ले कर आए. दाग की पैदाइश 1831 में हुई. उन्होंने शहजादों के साथ तालीम हालिस की. दाग की परवरिश किले के अंदर अदबी माहौल में हुई. यहीं से उन्हें शेर व शायरी का शौक पैदा हुआ.


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उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से 
कभी गोया किसी में थी ही नहीं 


सबक़ ऐसा पढ़ा दिया तू ने 
दिल से सब कुछ भुला दिया तू ने 


जिन को अपनी ख़बर नहीं अब तक 
वो मिरे दिल का राज़ क्या जानें 


ये तो कहिए इस ख़ता की क्या सज़ा 
मैं जो कह दूँ आप पर मरता हूँ मैं


तदबीर से क़िस्मत की बुराई नहीं जाती 
बिगड़ी हुई तक़दीर बनाई नहीं जाती 


हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे 
तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना 


इलाही क्यूँ नहीं उठती क़यामत माजरा क्या है 
हमारे सामने पहलू में वो दुश्मन के बैठे हैं 


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ये तो नहीं कि तुम सा जहाँ में हसीं नहीं 
इस दिल को क्या करूँ ये बहलता कहीं नहीं


तुम को चाहा तो ख़ता क्या है बता दो मुझ को 
दूसरा कोई तो अपना सा दिखा दो मुझ को 


ख़बर सुन कर मिरे मरने की वो बोले रक़ीबों से 
ख़ुदा बख़्शे बहुत सी ख़ूबियाँ थीं मरने वाले में 


मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है 
मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है 


तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता 
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता 


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