'किस क़दर महदूद कर देता है ग़म इंसान को, ख़त्म कर देता है हर उम्मीद हर इम्कान को'
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam2158904

'किस क़दर महदूद कर देता है ग़म इंसान को, ख़त्म कर देता है हर उम्मीद हर इम्कान को'

Zeeshan Sahil: जीशान साहिल की नज्में 'मोहब्बत का जन्म' और 'चिड़ियों का शोर' बहुत मशहूर हैं. उनकी किताब 'अरीना' बहुत मशहूर है. यहां पढ़ें उनके चुनिंदा शेर.

'किस क़दर महदूद कर देता है ग़म इंसान को, ख़त्म कर देता है हर उम्मीद हर इम्कान को'

Zeeshan Sahil: जीशान साहिल की पैदाइश 15 दिसंबर 1961 को हैदराबाद, सिंध में हुई थी. शेर व शायरी लिखने वाले ज़ीशान ने 'सारी नज़्में' शीर्षक से एक ही खंड के तहत आठ संग्रह प्रकाशित किए थे. 'वजह-ए-बेगानगी' उनकी ग़ज़लों का संग्रह है, जो 2011 में प्रकाशित हुआ. वह अपने सादे और संवेदनशीन लेखन के लिए जाने जाते हैं. जीशान साहिल 12 अप्रैल, 2008 को कराची में इस दुनिया को अलविदा कह गए.

खिड़की के रस्ते से लाया करता हूँ 
मैं बाहर की दुनिया ख़ाली कमरे में 

वो दास्तान मुकम्मल करे तो अच्छा है 
मुझे मिला है ज़रा सा सिरा कहानी का 

कोई आ के हमें ढूँडेगा तो खो जाएगा 
हम नए ग़म में पुराने से बहुत आगे हैं 

गुज़र गई है मगर रोज़ याद आती है 
वो एक शाम जिसे भूलने की हसरत है 

मैं ज़िंदगी के सभी ग़म भुलाए बैठा हूँ 
तुम्हारे इश्क़ से कितनी मुझे सहूलत है 

आया था मेरे पास वो कुछ देर के लिए 
सूरज मगर गहन में बहुत देर तक रहा 

जो हमें पा के भी खोने से बहुत पीछे था 
हम उसे खो के भी पाने से बहुत आगे हैं 

जो वो नहीं था तो मैं मुत्तफ़िक़ था लोगों से 
वो मेरे सामने आया तो इख़्तिलाफ़ किया 

हवा बहार की आएगी और मैं चूमूँगा 
वो सारे फूल कि जिन में तिरी शबाहत है 

किस क़दर महदूद कर देता है ग़म इंसान को 
ख़त्म कर देता है हर उम्मीद हर इम्कान को 

बस एक रंग है दिल में किसी के होने से 
अब अपने-आप को इस से भी सादा क्या करना 

Trending news