Delhi News: राजधानी दिल्ली में एक दिलचस्प कानूनी लड़ाई की खबर सामने आई है. दिल्ली हाईकोर्ट भारतीय खानों बटर चिकन और दाल मखनी को विकसित करने के अधिकार के सही दावेदार का फैसला करने के लिए तैयार है. लड़ाई मोती महल और दरियागंज रेस्तरां के बीच शुरू हुई है. दोनों "बटर चिकन और दाल मखनी के आविष्कारक" टैगलाइन के यूज को लेकर आमने-सामने हैं. मोती महल का इल्जाम है कि दरियागंज रेस्तरां दोनों रेस्तरांओं के बीच कनेक्‍शन होने की बात कहकर भ्रम फैला रहा है.


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विवाद का जड़ मोती महल के इस तर्क को लेकर है कि उसके रेस्तरां की पहली शाखा दरियागंज इलाके में खोली गई थी. जबकि उसका तर्क है कि इस भौगोलिक रिश्ते का दरियागंज द्वारा एक ऐसे पाक रिश्ता को दर्शाने के लिए शोषण किया जा रहा है, जो वजूद में ही नहीं है.


वहीं, इस मामले की सुनवाई जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने की. उन्होंने दरियागंज रेस्तरां के मालिकों को समन जारी कर एक महीने के भीतर लिखित जवाब दाखिल करने का हु्क्म दिया. इसके अलावा उन्होंने अंतरिम निषेधाज्ञा ( Interim Injunction ) के लिए मोती महल के एप्लीकेशन पर नोटिस जारी किया और सुनवाई के लिए इसी साल 29 मई की तारीख तय की.


दोनों ने दिया तर्क
विवाद की जड़ बटर चिकन और दाल मखनी के आविष्कार को लेकर दोनों रेस्तरां के बीच ऐतिहासिक दावे में मौजूद है. मोती महल इन खानों को बनाने का क्रेडिट अपने मरहूम पिता कुंदन लाल गुजराल को देता है. जबकि मोती महल के मुताबिक, देश का बंटवारे के बाद भारत आए गुजराल ने न सिर्फ तंदूरी चिकन का आविष्कार किया, बल्कि बटर चिकन और दाल मखनी का भी खोज किया.


मोती महल का सूट एक पाक-कथा का खुलासा करता है, जहां गुजराल, बिना बिके बचे हुए चिकन के सूखने से चिंतित थे, उन्होंने चतुराई से 'मखनी' या बटर सॉस का खोज किया. यह सॉस, टमाटर, मक्खन, क्रीम और मसालों का मिक्सर बनाया जो बाद में लजीज बटर चिकन का बुनियाद बना. मोती महल ने आगे तर्क दिया कि दाल मखनी का खोज बटर चिकन के आविष्कार से जटिल रूप से जुड़ा हुआ है, क्योंकि दाल मखनी बनाने के लिए काली दाल के साथ भी यही नुस्खा लागू किया गया था.जबकि दरियागंज रेस्तरां ने अभी तक अपना ऑफिशियल जवाब दाखिल नहीं किया है. 


हालांकि, इसके वकील अमित सिब्बल ने मोती महल की तरफ से पेश एडवोकेट संदीप सेठी के इल्जामों को सख्ती से खारिज कर दिया, और पूरे मुकदमे को साफ तौर पर "बेबुनियाद" करार दिया.


कोर्ट ने क्या कहा ?
अदालत के हु्कम में कहा गया है, "सिब्बल ने सेठी की दलीलों का पुरजोर विरोध किया और पूरे मुकदमे को गलत, निराधार और कार्रवाई को वजह से रहित करार दिया. सिब्बल और आनंद ने आगे तर्क दिया कि प्रतिवादी (दरियागंज के मालिक) किसी भी गलत प्रतिनिधित्व में शामिल नहीं हुए हैं. दावा और मुकदमे में लगाए गए इल्जाम सच्चाई से बहुत दूर हैं.”