तलाक और खुला में क्या है फर्क, ये कैसे मुस्लिम औरतों को मजबूत बनाता है?
What is Khula: तलाक और खुला में बुनियादी फर्क यही है कि तलाक मर्दों की तरफ से दिया जाता है जबकि खुला औरतों की तरफ से दिया जाता है.
What is Khula: मद्रास हाई कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं में तलाक को लेकर टिप्पणी की है. अदालत ने कहा है कि शरियत कौंसिलें किसी को भी तलाक या 'खुले' का सर्टिफिकेट जारी नहीं कर सकते. कोर्ट ने हिदायत दी है कि तलाक या खुले के लिए फैमिली कोर्ट का रुख करें. आदालत ने बताया कि खुला भी तलाक का एक रूप है. अदालत के इसे फैसले से मुस्लिम महिलाओं में पुरुषों को तलाक देने के रास्ते खुलेंगे.
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यह है मामला
दरअसल साल 2017 में एक महिला को शरियत कौंसिल की तरफ से एक 'खुला' प्रमाण पत्र जारी किया गया था. इसके खिलाफ पति ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की. पति ने कोर्ट को बताया कि कानून के मुताबिक किसी भी शरीयत कौंसिल को इस तरह के प्रमाण पत्र जारी करने का हक नहीं है. इसे कोर्ट ने सही ठहराया. इसके बाद अदालत ने ये बातें कहीं.
क्या होता है खुला?
'खुला' तलाक का ही दूसरा रूप है. फर्क ये है कि यह औरत की तरफ से लिया जाता है. इसके जरिए औरत अपने पति से अलग हो सकती है. तलाक में शौहर अपनी बीवी को तलाक देता है लेकिन खुला में बीवी अपने पति से अलग होती है. कुरान और हदीस में इसका जिक्र है. अगर कोई औरत अपने पति से खुला लेती है तो उसे कुछ जायदाद वापस देनी पड़ती है. इसके लिए दोनों की रजामंदी जरूरी है. खुला का ऑफर बीवी ही रख सकती है.
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खुला पर कुरान और हदीस में जिक्र
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि0 से रिवायत है कि हज़रत सबित बिन क़ैस रजि0 की बीवी पैगंबर मोहम्मद के पास गईं और कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! सबित बिन क़ैस के दीन और अख्लाक पर ऐब नहीं लगाती अलबत्ता मैं इस्लाम में कुफ्र को नापसंद करती हूं. यह सुन कर पैगंबर मोहम्मद ने सवाल किया कि क्या वह बाग (जो उसने तुम्हें महर में दिया था) उसे वापस कर सकती हो? उस औरत ने जवाब दिया हां! पैगंबर मोहम्मद स0 ने (साबित बिन क़ैस) से कहा कि बाग वापस ले लो और इसे एक तलाक दे दो. (हदीस: सहीह बुखारी- 5273)
अल्लाह ताला कुरान में कहता है कि "और तुम्हारे लिए हलाल नहीं कि तुम ने जो कुछ उन्हें दिया है इस में से कुछ वापस ले लो मगर ये कि वह दोनों इस से डरें कि वह अल्लाह ताला की हदों को कायम नहीं रख सकेंगे, तो फिर उन पर कोई गुनाह और जुर्म नहीं कि वह इसका फदिया दें." (अलबकर: 229)
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