Halala of Muslims Women: प्रतिबंधित तीन तलाक की शिकार महिलाओं को उसके पति से दोबारा निकाह कराने से पहले उसका किसी अन्य पुरुष से निकाह करने और तलाक दिलवाने की हालाला की प्रथा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
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नई दिल्लीः उत्तर प्रदेश की शामली की रहने वाली शाहीन (बदला हुआ नाम) का अक्सर अपने पति जाहिद से झगड़ा होता था. वह शराब पीकर आने के बाद शाहीन के साथ गाली-गलौज और मारपीट करता था. एक दिन उसने नशे की हालत में शाहीन को तीन तलाक दे दिया. तीन बच्चों की मां शाहीन ने रोना-पीटना शुरू कर दिया. बात कानों-कान घर से मोहल्ले तक पहुंच गई. जाहिद को जब होश आया, तो उसे एहसास हुआ कि उससे बड़ी गलती हो गई है. उसने नशे और गुस्से की हालत में ऐसा कर दिया था.
चुपके-चुपके ये बात गांव के एक मौलाना नदीम अहमद को बताई गई, तो उसने दोबारा जाहिद से शाहीन का निकाह कराने के लिए 'हलाला' की तरकीब सुझाई. बात ज्यादा दूर तक न फैले इसके लिए एक भरोसेमंद आदमी जुनैद की तलाश की गई और उससे इस शर्त पर शाहीन का निकाह किया गया कि वह उसे एक दिन बाद ही फिर तलाक दे देगा. शाहीन का जुनैद से निकाह हो गया और फिर कल होकर उसने शाहीन को तीन तलाक दे दिया. इसके बाद उसी दिन फिर से शाहीन का निकाह जाहिद से करा दिया गया. मौलाना नदीम ने इस काम के लिए जाहिद से 13 हजार रुपये लिए थे, जिसमें से कुछ हिस्सा उसने जुनैद को भी दिया, जिसने शाहीन से एक दिन के लिए निकाह कर उसे फिर से तलाक दे दिया था. इस पूरे प्रकिया को हलाला के नाम से जाना जाता है. हलाला के बाद सबकुछ सामान्य हो गया, लेकिन शाहीन के लिए ये घटना एक नासूर बन गया, जिसे शायद ही वह कभी भूल पाएगी. वहीं, हलाला की इस पूरी प्रक्रिया में इस्लामी कानूनों जमकर धज्जियां उड़ाई गई.
मामला क्यों है सुर्खियों में ?
इन दिनों ये मामला इसलिए सुर्खियों में है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 20 जनवरी को पांच जजों वाली एक संवैधानिक बेंच का गठन किया है, जो इस मामले पर सुनवाई करेंगी कि क्या 'हलाला' का चलन इस्लामिक कानून के दायरे में आता है या नही ? हदीस और कुरान में इसे लेकर क्या हुक्म है ? क्या ये मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करता है? क्या ये प्रथा मानवाधिकारों के विरूद्ध तो नहीं है और इसपर सरकार को क्या ऐक्शन लेना चाहिए ? हलाला प्रथा के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट में भाजपा समर्थक सीनियर वकील अश्विनी उपाध्याय सहित 9 गैर-सरकारी संगठनों ने सुनवाई के लिए अपील की है.
तलाक से जुड़ा है ये मसला
हलाला तलाक से जुड़ा हुआ एक मसला है. इस्लामी नियमों के मुताबिक उपरोक्त मामले में जाहिद द्वारा अपनी पत्नी शाहीन को दिया गया तलाक ही गैर-इस्लामी है. एक साथ तीन तलाक देना इस्लाम में मना है. इसके बावजूद ये दुनिया के कई देशों में आज भी चलन में है, जबकि कई देशों में इसपर प्रतिबंध लगा दिया गया है. भारत में भी मोदी सरकार ने एक साथ इंस्टैंट तीन तलाक पर रोक लगा दिया है. तलाक के बाद अपने पति से दोबारा निकाह के लिए जो हलाला किया गया, उसकी भी इस्लाम इजाजत नहीं देता है. इस्लाम में इसे गैर-इस्लामी अमल और यहां तक कि हराम करार दिया गया है.
जब तीन तलाक गैर-इस्लामी है, तो फिर हलाला क्यों ?
एक साथ तीन तलाक को इस्लाम में प्रतिबंधित किया गया है और इसे देने का सही तरीका तीन-तीन माह के अंतराल पर बताया गया है. लेकिन कई उलेमा और इस्लामिक ज्यूरिसप्रूडेंस के विशेषज्ञ ये मानते हैं कि मना तो किया गया है, लेकिन एक साथ तीन तलाक दे दने से ये शून्य घोषित नहीं होता है बल्कि तलाक हो जाता है. इस मामले में उलेमा की राय बंटी हुई है. बस इसी लूप होल्स का कुछ शातिर मौलाना फायदा उठाते हैं और कम-पढ़े लिखे मुसलमानों को बेवकूफ बनाकर उनकी महिलाओं का हलाला करवाने का उन्हें ज्ञान देते हैं.
इस्लाम में आखिर तलाक का प्रावधान ही क्यों है ?
इस्लाम में जायज यानी कानून सम्मत कामों में तलाक को सबसे बुरा और ईश्वर की नजर में नापंसदीदा काम बताया गया है. इसके बावजूद इसका वजूद रखा गया है, ताकि किसी का वैवाहिक जीवन अगर कष्टमय हो जाए, गलती या अंजाने में किसी ऐसे स्त्री-पुरुष की एक दूसरे से शादी हो जाए, जिसका चलना दूभर और नामुमकिन है, तो उस रिश्ते को ढोते रहने, घुट-घुटकर मरने और एक दूसरे से पीछा छुड़ाने के लिए एक-दूसरे की जान लेने या आत्महत्या करने जैसी नौबत से बचा जा सके और जीवन को फिर से नए सिरे से शुरू किया जा सके. यहां वैवाहिक जीवन से ज्यादा एक इंसान के खुद के पसंद के जीवन को महत्व दिया गया है. विवाह को सात जन्मों का बंधन न बनाकर आपसी सहमति पर इसे छोड़ा गया है.
तलाक का क्या है फिर सही इस्लामी तरीका
अगर पति-पत्नी के बीच नहीं बन रही हो, तो पहले आपस में अडजस्ट करने का हुक्म है. इससे भी बात न बने तो किसी तीसरे पक्ष यानी घर-परिवार को बैठाकर मामला हल करने का हुक्म है. बात अगर यहां से निकल गई हो और तो एक बार तलाक देने का प्रावधान है. इसके बाद पत्नी अपने पति के घर में ही तीन महीने या तीन मासिक धर्म चक्र आने तक रहेगी, लेकिन पति-पत्नी के बीच कोई यौन संबंध नहीं होगा. इस अवधि के बाद अगर लगे कि जीवन फिर नए सिरे से शुरू किया जाए और दोनों को अपनी गलती का एहसास हो जाए, तो पति अपनी पत्नी से निकाह कर फिर पहले की तरह रह सकते हैं. तीन माह में भी अगर हालात नहीं सुधरे तो पति-पत्नी को एक बार फिर तलाक दे सकता है. 3 माह तक फिर पहले वाला प्रोसेस अपनाना होगा. इस बीच दोनों आपस में सुलह करना चाहे तो फिर निकाह कर सकते हैं. इसके बाद भी अगर संबंध सुधरने की गुंजाइश न बचे तो पति तीसरी बार अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है. इसके बाद सुलह की कोई गुंजाइश बाकी नहीं रह जाएगी और वह अपने पति के लिए हराम यानी एक तरह से गैर महिला हो जाएगी. सुरह अलबकरा -23
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तीसरी बार तलाक के बाद पति के लिए एक गैर-महिला हो जाती है मुस्लिम औरत
इस्लामी नियमों के मुताबिक जब तलाक के द्वारा पति-पत्नी एक दूसरे से अलग हो जाए तो दोनों एक दूसरे से पूर्णरूप से आजाद हो जाते हैं. दोनों की एक दूसरे की कोई जिम्मेदारी बाकी नहीं रह जाती है. महिला जहां, चाहे जिससे चाहे अपनी मर्जी से विवाह कर सकती है, लेकिन पहले पति को छोड़कर. हालांकि, यहां भविष्य के लिए एक छूट दी गई है. अगर वह महिला किसी अन्य पुरुष से बाद में विवाह कर लेती है, फिर उसके पति का देहांत हो जाता है, या फिर उससे भी वह तलाक ले लेती है, ऐसी सूरत में वह इद्दत की अवधि पूरी कर पहले पति जो अब उसके लिए एक सामान्य पुरुष है, उससे दोबारा शादी कर सकती है. सुरह अलबकरा -23
तीन बार तलाक के बाद सीधे पुराने पति से शादी का क्यों नहीं है हुक्म
इस मसले पर डॉक्टर मुफ्ती इरफान अहमद कासमी कहते हैं, "यह एक तरह से पुरुषों के लिए अपराध करने के पहले उससे डराने का कठोर नियम और दंड है. इससे पुरुषों में डर पैदा होता है कि अगर वह अपनी पत्नी को गुस्से में या बिना किसी ठोस कारण के या फिर उसे प्रताड़ित करने के उद्देश्य से उसे तलाक दे देता है, तो फिर उसे वह अपना नहीं सकता है. इससे उसमें एक तरह का तलाक को लेकर भय पैदा हो जाता है. वहीं, इससे महिलाओं की भी सुरक्षा होती है. अगर ये शर्त नहीं होगी तो कोई दुषचरित्र का या जालिम मर्द जब चाहे अपनी पत्नी को तलाक दे देगा और जब मर्जी होगी उससे फिर निकाह कर लेगा. इससे एक भोग की वस्तु बनकर रह जाएगी."
हलाला का कैसे होता है दुरुपयोग ?
महिला का पहले पति से तलाक के बाद भविष्य में उसे दोबारा उससे विवाह करने का जो प्रावधान रखा गया है, लोग इसी नियम और छूट का दुरुपयोग करते हैं. इस नियम के तहत एक साथ तीन तलाक देकर पत्नी को छोड़ने के बाद लोग उसका किसी दूसरे पुरुष से विवाह कराकर फिर उससे तुरंत तलाक दिलवाकर पहले पति से विवाह करवा देते हैं. जबकि तलाक के बाद तीन माह के इद्दत की अवधि गुजारने का इसमें पालन नहीं किया जाता है. एक महिला तलाक लेने के बाद कम से कम नौ माह बाद ही दूसरी शादी कर सकता है.
इस प्रकार के हलाला के प्रथा से प्रतिबंधित एक साथ तीन तलाक को प्रश्रय मिलता है. इसके साथ ही इससे समाज में व्यभिचार पनपने का खतरा रहता है. सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े मुस्लिम समाज के कुछ पुरुष पत्नी को तलाक देकर किसी और को सौंप देते हैं, फिर उससे तलाक दिलाकर अपना निकाह कर लेते हैं. हालांकि, ऐसे मामले विरले ही सामने आते हैं,
कुछ भ्रष्ट टाइप के मौलानाओं ने हलाला को पेशा बना लिया
दूसरी स्थति ये हैं कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान जैसे देशों में कुछ भ्रष्ट टाइप के मौलानाओं ने हलाला को पेशा बना लिया है. अगर कोई अपनी पत्नी को किसी वजह से एक साथ तीन तलाक दे देता है, तो उसे दोबारा निकाह कराने के लिए एक बिचौलिया रखते हैं. उससे इस शर्त पर महिला का निकाह करा दिया जाता है कि वह महिला से निकाह के बाद जिस्मानी संबंध नहीं बनाएगा और तुरंत तलाक दे देगा. इसके बदले में उसे कुछ पैसे दे दिए जाते हैं और कुछ पैसे मौलाना खुद रख लेते हैं. इस्लामी स्कॉलर डॉ. शमशुद्दीन नदवी इस तरह के प्लांड हलाला को हराम और जिस्मफरोशी करार देते हैं. वह कहते हैं, कई लोग इसकी आड़ लेकर महिलाओं का शोषण करते हैं. उनकी गरिमा को तार-तार करते हैं. हलाला करने और करवाने वालों पर पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने लानत भेजा है, और इसे शैतानी अमल बताया है. तिरमिजी -894
हिंदूवादी संगठन हलाला के बहाने इस्लाम और मुसलमानों की छवि करते हैं धुमिल
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील नियाजुद्दीन अहमद कहते हैं, हलाला का चलन मुसलमानों में बहुत आम नहीं है. ऐसे मामले विरले ही सामने आते हैं. लेकिन इतना सच है कि ये बुराई मुस्लिम समाज का हिस्सा है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस तरह के कई मामले सामने आते हैं, लेकिन ऐसे मामलों पर लोग इसे किसी की व्यक्तिगत समस्या मानकर इसपर चुप्पी साध लेते हैं. इस बुराई को दूर करने की कोशिश नहीं करते हैं. बुराई कम मात्रा में हो या ज्यादा, इसे हर हाल में समाप्त किया जाना चाहिए. ये महिलाओं के सम्मान के विरूद्ध है.
इस मामले पर अंजुमन निसवां नाम के एक महिला संगठन की पदाधिकारी शगुफता परवीन कहती हैं, "हलाला मुस्लिम समाज की एक बुराई है, जिसे हम सब को मिलकर दूर करना है. ये जनजागरुकता से दूर होगा. लेकिन हाल के दिनों में देशभर में दक्षिणपंथी हिंदू संघटनों ने इसे काफी जोर-शोर से प्रचारित करने का काम किया है. ऐसा इस्लाम और मुसलमानों की छवि खराब करने की कोशिश के तहत किया जा रहा है. इसमें हिंदू संघठनों की एक छुपी हुई मंशा काम कर रही है. वह इसे कथित लव जिहाद के काउंटर लव जिहाद के तौर पर पेश कर यह प्रचारित करते हैं कि मुसलमानों में लड़कियों का हलाला किया जाता है और उन्हें तलाक दे दिया जाता है, इसलिए हिंदू लड़के उनके लिए ज्यादा सेफ हैं. हमें उनकी मंशा भी समझनी होगी."
क्या कहते हैं उलेमा ?
हलाला के प्रथा का एक स्वर से सभी धार्मिक मौलाना और उलेमा विरोध करते हैं और इसे गैर इस्लामी करार देकर इसपर रोक लगाने की मांग करते हैं. जमात-ए- इस्लामी हिंद के शरिया काउंसिल के सद्र मौलाना रजि उल इस्लाम इस मुद्दे पर कहते हैं, "सरकार अगर कोई कानून लाकर इसे प्रतिबंधति करती है, तो इससे इस बुराई पर रोक लगेगी. लेकिन किसी बुराई को कानून से ज्यादा समाज में जागरुकता लाकर रोका जा सकता है. इसके लिए हमें मुस्लिम नौजवान, लड़के और लड़कियों को जागरूक करना होगा. उनतक दीन और धर्म का सही ज्ञान पहुंचाना होगा."
इस मसले पर सोशल एक्टिविस्ट डॉ. जीनत अली कहती हैं, "इस्लाम में औरतों को काफी अधिकार दिए गए हैं. हलाला उनकी इज्जत और गरिमा पर हमला है. जो लोग ऐसा करते हैं, उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए. सरकार अगर इसे रोकने के लिए कोई कानूनी लाती है, तो उसका स्वगत किया जाना चाहिए." डॉ. शमशुद्दीन नदवी का भी कहना है कि तीन तलाक की तरह कोई कानून बनाकर 'हलाला' को भी प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, लेकिन कानून बनाते समय सभी पक्षों का ध्यान रखना होगा, क्योंकि तीन तलाक रोधी कानून में अभी कई खामियां हैं.
Zee Salaam