Habeeb Ahmad Siddiqui Hindi Shayari: हबीब अहमद सिद्दीकी उर्दू के बेहतरीन शायरों में शुमार होते हैं. उनकी पैदाइश 15 जनवरी 1908 को सेवहारा ज़िला बिजनौर में हुई. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से तालीम हासिल की.  हबीब अहमद सिद्दीकी ने अपनी शुरूआती नौकरी डिप्टी कलेक्टरी के बतौर शुरू की. नैनीताल के कमिश्नर के पद पर भी नियुक्त रहे. उत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन के मेम्बर भी रहे. 1969 में पाकिस्तान चले गये.


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मुझे नफ़रत नहीं जन्नत से लेकिन 
गुनाहों में अजब इक दिलकशी है 


यूँ तो दोज़ख़ में भी हंगामे बरपा हैं लेकिन 
फीके फीके से हैं आशोब-ए-जहाँ के आगे 


मिलने को तो मिलती हैं निगाहों से निगाहें 
वो लुत्फ़-ए-सवालात-ओ-जवाबात नहीं अब 


अपने दामन में एक तार नहीं 
और सारी बहार बाक़ी है 


आप शर्मिंदा जफ़ाओं पे न हों 
जिन पे गुज़री थी वही भूल गए 


कितने सनम ख़ुद हम ने तराशे 
ज़ौक़-ए-परस्तिश अल्लाहु-अकबर 


है नवेद-ए-बहार हर लब पर 
कम-नसीबों को ए'तिबार नहीं 


जो काम करने हैं उस में न चाहिए ताख़ीर 
कभी पयाम अजल ना-गहाँ भी आता है 


एक काबा के सनम तोड़े तो क्या 
नस्ल-ओ-मिल्लत के सनम-ख़ाने बहुत 


वो करम हो कि सितम एक तअल्लुक़ है ज़रूर 
कोई तो दर्द-ए-मोहब्बत का अमीं होता है 


न हो कुछ और तो वो दिल अता हो 
बहल जाए जो सई-ए-राएगाँ से 


चश्म-ए-सय्याद पे हर लहज़ा नज़र रखता है 
हाए वो सैद जो कहने को तह-ए-दाम नहीं 


अब तो जो शय है मिरी नज़रों में है ना-पाएदार 
याद आया मैं कि ग़म को जावेदाँ समझा था मैं 


हज़ारों तमन्नाओं के ख़ूँ से हम ने 
ख़रीदी है इक तोहमत-ए-पारसाई 


मेरे लिए जीने का सहारा है अभी तक 
वो अहद-ए-तमन्ना कि तुम्हें याद न होगा 


वो क्या बताए कि क्या शय उमीद होती है 
जिसे नसीब कभी शाम-ए-इंतिज़ार न हो 


अफ़्लाक पर तो हम ने बनाईं हज़ार-हा 
ता'मीर कोई दहर में जन्नत न कर सके 


ये कब कहा है कि तुम वज्ह-ए-शोरिश-ए-दिल हो 
ये पूछता हूँ कि दिल में ये बेकली क्यूँ है 


उन निगाहों को अजब तर्ज़-ए-कलाम आता है 
ऐसा लगता है बहारों का पयाम आता है 


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