Tabish Dehlvi Hindi Shayari: ताबिश देहलवी के शेर, `मंज़िलों को नज़र में रक्खा है`
Tabish Dehlvi Hindi Shayari: सनातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद ताबिश देहलवी ने साल 1923 में शेर व शायरी करनी शुरू की. उन्होंने शायर फानी बदायूनी के कयादत में शायरी सीखी. उन्होंने गजल, नज्म, नात लिखी.
Tabish Dehlvi Hindi Shayari: ताबिश देहलवी उर्दू के मशहूर शायर हैं. उनका असली नाम मसऊद उल हसन है. उनकी पैदाइश 11 नवंबर साल 1911 में दिल्ली में हुई. उन्होंने शुरूआती पढ़ाई घर पर पूरी की. इसके बाद वह हैदराबाद चले गए. यहां उनकी जॉप टेलीग्राफ में लगी. इसके बाद वह ऑल इंडिया रेडियो के साथ जुड़े. बंटवारे के वक्त ताबिश पाकिस्तान चले गए. यहां उन्होंने रेडियो पाकिस्तान में काम किया. नीमरोज, चराग ए सेहरा, गुबार ए अंजुम उनकी शायरी के कलेक्शन हैं.
छोटी पड़ती है अना की चादर
पाँव ढकता हूँ तो सर खुलता है
अभी हैं क़ुर्ब के कुछ और मरहले बाक़ी
कि तुझ को पा के हमें फिर तिरी तमन्ना है
शाहों की बंदगी में सर भी नहीं झुकाया
तेरे लिए सरापा आदाब हो गए हम
आईना जब भी रू-ब-रू आया
अपना चेहरा छुपा लिया हम ने
ज़र्रे में गुम हज़ार सहरा
क़तरे में मुहीत लाख क़ुल्ज़ुम
मुझ को अहबाब के अल्ताफ़-ओ-करम ने मारा
लोग अब ज़हर के बदले भी दवा देते हैं
बंद आँखों से देख ली दुनिया
हम ने क्या कुछ न देख कर देखा
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शर्मिंदा हम जुनूँ से हैं एक एक तार के
क्या कीजिए कि दिन हैं अभी तक बहार के
काश दिल ही ज़रा ठहर जाता
गर्दिशों में अगर ज़माना था
मंज़िलों को नज़र में रक्खा है
जब क़दम रहगुज़र में रक्खा है
यही हसरत है कि वो एक नज़र देख तो ले
और उस ने कभी इस सम्त अगर देख लिया
हर रोज़ इक आवाज़ा अनल-हक़ का लगाएँ
देखें तो कि है सिलसिला-ए-दार कहाँ तक
सोज़-परवर निगाह रखते हैं
हम नज़र में भी आह रखते हैं
रूह की एक इक चोट उभारें दिल का एक इक ज़ख़्म दिखाएँ
हम से हो तो नुमायाँ क्या क्या अपने ख़द्द-ओ-ख़ाल करें
हम हैं रहबर से दो क़दम आगे
हौसले शौक़ से दो-चंद रहे
ये मस्लहत कि कहीं दहर है कहीं फ़िरदौस
वही जो आलम-ए-दिल हम पे हम-नफ़स गुज़रा
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