Meer Taqi Meer Hindi Shayari: मीर तकी मीर उर्दू के पहले सबसे बड़े शायर हैं जिन्हें ' ख़ुदा-ए-सुख़न, (शायरी का ख़ुदा) कहा जाता है. आज हम आपके सामने पेश कर रहे हैं मीर तकी मीर की शायरी.
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Meer Taqi Meer Hindi Shayari: मीर तकी मीर उर्दू के बड़े शायर हैं. उनकी पैदाइश फरवरी 1723 में हुई थी. वह 18वीं शताब्दी के मुगल भारत के एक उर्दू कवि थे और उर्दू भाषा को आकार देने वाले अग्रदूतों में से एक थे. मीर के शेर में उनका दर्द झलकता है. उन्होंने अपने शहर दिल्ली की बदहाली पर काफी दुख जताया है. वह उर्दू ग़ज़ल के बेहतरीन कवियों में से एक थे. मीर को अक्सर उर्दू जबान सबसे अच्छे शायरों के तौर पर याद किया जाता है. उनका इंतेकाल 20 सितंबर 1810 में हुआ.
अब कर के फ़रामोश तो नाशाद करोगे
पर हम जो न होंगे तो बहुत याद करोगे
क्या कहें कुछ कहा नहीं जाता
अब तो चुप भी रहा नहीं जाता
गुल हो महताब हो आईना हो ख़ुर्शीद हो मीर
अपना महबूब वही है जो अदा रखता हो
शाम से कुछ बुझा सा रहता हूँ
दिल हुआ है चराग़ मुफ़्लिस का
बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदा
क़हर होता जो बा-वफ़ा होता
रोते फिरते हैं सारी सारी रात
अब यही रोज़गार है अपना
क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़
जान का रोग है बला है इश्क़
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दिल की वीरानी का क्या मज़कूर है
ये नगर सौ मर्तबा लूटा गया
फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थे
पर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत
याद उस की इतनी ख़ूब नहीं 'मीर' बाज़ आ
नादान फिर वो जी से भुलाया न जाएगा
कोई तुम सा भी काश तुम को मिले
मुद्दआ हम को इंतिक़ाम से है
आईने को भी देखो पर टुक इधर भी देखो
हैरान चश्म-ए-आशिक़ दमके है जैसे हीरा
इस बाग़ के हर गुल से चिपक जाती हैं आँखें
मुश्किल बनी है आन के साहिब-नज़रों को
मत सहल हमें जानो फिरता है फ़लक बरसों
तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते हैं
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