Poetry on Colours: पूरा देश आज होली मना रहा है. होली रंगों का त्योहार है. इसमें लोग एक दूसरे को रंग लगाते हैं. खुशियां बांटते हैं. रंग हमारी जिंदगी में बहुत मायने रखते हैं. रंगों से जिंदगी रंगीन होती है. किसी चीज का रंग बरकरार है तो वह नई है इसी के उलट अगर किसी चीज का रंग उतर जाए तो वह पुरानी मान ली जाती है. रंगों को मौजूं बनाकर कई शायरों ने इस पर अपनी कलम चलाई है. आज हम आपके सामने पेश कर रहे हैं रंगों पर शेर.


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ग़ैर से खेली है होली यार ने 
डाले मुझ पर दीदा-ए-ख़ूँ-बार रंग 


रंग ही से फ़रेब खाते रहें 
ख़ुशबुएँ आज़माना भूल गए 


उजालों में छुपी थी एक लड़की 
फ़लक का रंग-रोग़न कर गई है 


वो कूदते उछलते रंगीन पैरहन थे 
मासूम क़हक़हों में उड़ता गुलाल देखा 


किसी कली किसी गुल में किसी चमन में नहीं 
वो रंग है ही नहीं जो तिरे बदन में नहीं 


कब तक चुनरी पर ही ज़ुल्म हों रंगों के 
रंगरेज़ा तेरी भी क़बा पर बरसे रंग 


तुम्हारे रंग फीके पड़ गए नाँ? 
मिरी आँखों की वीरानी के आगे 


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मुझ को एहसास-ए-रंग-ओ-बू न हुआ 
यूँ भी अक्सर बहार आई है 


रंग दरकार थे हम को तिरी ख़ामोशी के 
एक आवाज़ की तस्वीर बनानी थी हमें 


अब की होली में रहा बे-कार रंग 
और ही लाया फ़िराक़-ए-यार रंग 


तमाम रात नहाया था शहर बारिश में 
वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे 


लब-ए-नाज़ुक के बोसे लूँ तो मिस्सी मुँह बनाती है 
कफ़-ए-पा को अगर चूमूँ तो मेहंदी रंग लाती है 


अजब बहार दिखाई लहू के छींटों ने 
ख़िज़ाँ का रंग भी रंग-ए-बहार जैसा था 


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