आंख रहते हुए अंधा है ज्ञान रखकर उसपर नहीं चलने वाला शख्स; देना होगा इस गलती का हिसाब!
Islamic Knowledge: इस्लाम में तालीम हासिल करने को बहुत जरूरी बताया गया है. लेकिन जो शख्स इल्म हासिल करता है और उस इल्म पर अमल नहीं करता है वह बहुत घाटे में है.
Islamic Knowledge: इस्लाम में तालीम की बहुत अहमियत है. इस्लाम में बताया गया है कि एक तालीम याफ्ता शख्स बिना तालीम वाले शख्स से उतना ही अलग है जितना एक देखने वाले शख्स से अंधा शख्स. इस्लाम में बताया गया है कि जो तालीम और इल्म आप हासिल करें उस पर अमल करें. इल्म सिर्फ इसलिए नहीं हासिल करना चाहिए कि दूसरों को बता सके कि वह तालीम याफ्ता है, बल्कि इल्म हासिल करने का मकसद अच्छा इंसान बनना होना चाहिए.
इस्लाम में कहा गया है कि जिस शख्स के पास इल्म नहीं होगा वह अच्छे बुरे का फर्क नहीं कर पाएगा. जिसके पास इल्म नहीं होगा उसको ये भी नहीं पता होगा कि दुनिया में अच्छे इंसान की तरह कैसे रहा जाए और कैसे अल्लाह की इबादत की जाए. कुरान में एक जगह इरशाद है कि "अल्लाह से उसके वही बंदे डरते हैं, जो इल्म रखते हैं."
इ्स्लाम में तालीम हासिल करना इतना जरूरी है कि अल्लाह ताला ने खुद प्रोफेट मोहम्मद स. से कहा कि "पढ़ अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया. जिसने इंसान को बस्ता खून से पैदा किया. पढ़ तेरा रब बड़े करम वाला है. जिस ने कलम के जरिए (इल्म) सिखाया. जिस ने इंसान को वह सिखाया जिसे वह नहीं जानता था." (कुरान: सूरह अल अलक़)
इस्लाम में कहा गया है कि जो शख्स इल्म हासिल कर ले और उस पर अमल न करे, वह गधे की तरह है, जो पीठ पर किताबें तो लिए हुए लेकिन वह इसका मतलब नहीं समझता है और न ही इसके माने जानता है. एक जगह और इरशाद है कि कयामत के दिन उस आलिम पर सबसे ज्यादा अजाब होगा जिसे उसके इल्म ने नफा न दिया होगा.
इस्लाम में इस बात का जिक्र है कि जो लोग दूसरों को भलाई का हुक्म देते हैं और अपने आप को भूल जाते हैं, वह गलत कर रहे हैं. अल्लाह ताला उन पर अजाब डालेगा. एक और जगह इरशाद है कि जो लोग दूसरों को भलाई की तालीम देते हैं, लेकिन खुद को भूल उनकी मिसाल चिराग जैसी है, जो अपने पास की जगह को तो रोशनी देता है, लेकिन उसके नीचे अंधेरा रहता है.
दूसरों को इल्म देने वाले और खुद अमल न करने वालों के बारे में अल्लाह ताला कुरान में कहता है कि "अल्लाह के नजदीक बहुत सख्त नापसंदीदा बात यह है कि तुम वह बात कहो जो खुद नहीं करते, ऐ ईमान वालों! तुम वह बातें क्यों कहते हो जो तुम करते नहीं हो?" (कुरान: सूरा- निस्फ)