इस्लाम जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की इजाजत देता है? क्या कहता है कुरान? आइए जानते हैं
Islamic Conversion Law: सवाल ये है कि कोई जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराकर क्या हासिल कर लेता है? क्या हकीहक में इस्लाम जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की इजाज़त देता है? आज हम कुरान की रोशनी में इन्हीं कुछ सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे कि आखिर हकीकत में है क्या?
नई दिल्ली: भारत में समय-समय पर जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की खबरें आती रहती हैं और इस्लाम पर ये इलज़ाम लगता आ रहा है कि इस मज़हब में जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की इजाज़त है. पिछले दिनों ही हिंदुओं का जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करने के इलज़ाम में मुफ्ती जहांगीर और उमर गौतम नाम के दो लोगों की गिरफ्तारी हुई है.
मुफ्ती जहांगीर, उमर गौतम और कमील सिद्दीकी धर्मांतरण केस हुए हैं गिरफ्तार
मुफ्ती जहांगीर और उमर गौतम पर आरोप है कि उन्होंने बहला-फुलसाकर और गुमराह करके हज़ारों आम हिंदुओं को इस्लाम में प्रवेश कराया है. इन दोनों पर ये आरोप भी लगा है कि ये आम तौर पर इन लोगों को निशाना बनाते हैं जो गरीब हिंदू युवा हैं और बोलने और सुनने के काबिल नहीं हैं, यानी जो मूक और बधिर हैं. इन दोनों के अलावा धर्मांतरण मामले में यूपी एटीएस ने मौलाना कमील सिद्दीकी को भी गिरफ्तार किया है. मौलाना कमील सिद्दीकी पर लोगों को धर्मांतरण के लिए फंडिंग जुटाने का आरोप है.
कई राज्यों ने धर्मांतरण को रोकने के लिए बनाए कानून
इस केस के बाद से ही इस धारणा ने मज़ीद जोर पकड़ा कि इस्लाम में जोर-जबरदस्ती है या मुस्लिम धर्म गुरु जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाते हैं. वहीं दूसरी तरफ कई बीजेपी शासित राज्यों ने कथित जबरदस्ती धर्म परिवर्तन और लव-जिहाद को रोकने के लिए कानून भी ले आई है और जबरदस्ती धर्म परिवर्तन केस में शामिल लोगों के लिए सख्त प्रावधान रखा है.
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जबरदस्ती धर्म परिवर्तन का इलजाम इस्लाम पर कितना दुरुस्त है?
लेकिन सवाल यही है कि कोई जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराकर क्या हासिल कर लेता है? क्या हकीहक में इस्लाम जबरदस्ती धर्म परिवर्तन की इजाज़त देता है? आज हम कुरान की रोशनी में इन्हीं कुछ सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे कि आखिर हकीकत में है क्या? और जबरदस्ती धर्म परिवर्तन का इलजाम इस्लाम पर कितना दुरुस्त है?
क्या कहता है कुरान?
इस्लाम के जानकारों के मुताबिक, इस्लाम धर्म में किसी किस्म की सख्ती या ज़बरदस्ती का कोई तसव्वुर नहीं है. इस हवाले से इस्लाम के विद्वान कुरान की एक आयत का हवाला देते हैं और वह आयत हैं:
इस्लाम में जबरदस्ती नहीं
- لاَ إِکْرَاہَ فِیْ الدِّیْنِ ( سورہ بقرہ،آیت 256)
- ला इकराहा फिद्दीन( सूरा बकरा, आयत 256)
ये आयत कुरान के सूरा अल बकरा में मौजूद है. इस आयत का आसान सा मतलब है कि धर्म (इस्लाम) में किसी भी तरह की कोई ज़बरदस्ती नहीं है. यानी धर्म में ज़बरदस्ती की कहीं भी कोई गुंजाइश नहीं है और इस्लाम में इस पर पूरी तरह से पाबंदी लगी हुई है.
- وَلَوْ شَآءَ رَبُّكَ لَءَامَنَ مَن فِى ٱلْأَرْضِ كُلُّهُمْ جَمِيعًا ۚ أَفَأَنتَ تُكْرِهُ ٱلنَّاسَ حَتَّىٰ يَكُونُواْ مُؤْمِنِينَ( سورہ یونس، آیت 99)
- वलौ शाआ रब्बुका ल-अमना मन फिल-अरडी कुल्लुहुम जमीआ. अफाअंता तुकरहुंन्नासा हत्ता यकूनू मोमिनीन
ये आयत कुरान के सूरा यूनुस में मौजूद है. इस आयत का मतलब है कि अगर रब चाहता तो जरूर सब के सब जो जमीन में आबाद हैं मुसलमान होते. जब रब ने उन्हें जबरन मोमिन नहीं बनाया तो क्या तुम, लोगों पर ज़बरदस्ती करेंगे? यहां तक कि वह इस्लाम कुबूल कर ले. इस आयत का भी सीधा सा मतलब यही है कि किसी को ज़बरदस्ती इस्लाम की दावत नहीं दी जकती है.
इब्न कदामाह अल मकदूसी का ये बयान भी जानिए
इन आयतों को और साफ करते हुए इस्लाम के मशहूर कानूनविद इब्न कदामाह अल मकदूसी ने तो यहां तक लिखा है कि अगर किसी ने इस्लाम कबूल कर लिया है तो भी उसे तब तक मुसलमान ना माना जाए जब तक ये साबित ना हो जाए कि उसके साथ कोई ज़ोर जबरदस्ती तो नहीं की गई है.
जबरदस्ती धर्म परिवर्तन गुनाह का काम
ये दो आयतें थीं कुरान की जिनमें साफ तौर पर ये कहा गया है कि किसी को ज़बरदस्ती इस्लाम में दाखिल नहीं किया जा सकता है और ये गुनाह का काम है. इससे साबित हो गया है कि बहला फुसलाकर, धोखेबाज़ी से या जबरदस्ती करके किसी इस्लाम में प्रवेश होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.
पैगंबर मोहम्मद ने जबरदस्ती धर्म परिवर्तन से मना किया
सिर्फ कुरान ने इन बातों को कहा ही नहीं, बल्कि कुरान के लाने वाले पैगंबर मोहम्मद साहब ने इस बातों पर अमल करके भी दिखाया. हदीस में आया है कि पैगंबर मोहम्मद साहब के ज़माने में एक शख्स ने इस्लाम कुबूल कर लिया..लेकिन कुछ दिनों बाद उसने वापस अपने धर्म में जाने की इजाजत मांगी तो पैगंबर मोहम्मद ने उसे खुशी खुशी अपने पुराने धर्म में वापस लौटने की इजाजत दे दी और पैगंबर ने कोई ज़बरदस्ती नहीं की.
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पैगंबर मोहम्मद के उत्तराधिकारियों ने भी पेश किया नमूना
पैगंबर मोहम्मद के बाद उनके उत्तराधिकारियों ने भी इस मामले में किसी भी तरह की कोई ज़बरदस्ती से काम नहीं लिया और ना ही जोर-जुल्म का रास्ता अपनाया. एक बार वाक्य है कि खलीफा उमर एक बुजुर्ग ईसाई महिला को मिलने के लिए बुलते हैं. वह महिला आती हैं, लेकि खलीफा उमर से मिले बगैर ही वह महिला वापस चली जाती हैं. इसके बाद खलीफा उमर को काफी अफसोस होता है और वह कहते हैं मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई क्योंकि उस महिला ने कहीं ये ना सोच लिया हो कि मैं उन्हें जबरदस्ती इस्लाम कबूल करने के लिए कह रहा हूं.
तनीजा क्या निकला
अब ज़ाहिर हो गया है कि इस्लामिक धर्म ग्रंथों ने ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन को बहुत बुरा अमल बताय है और इसकी कतई इजाज़त नहीं दी है. इस्लाम के तमाम इतिहासकार, स्कॉलर्स और जानकार भी धर्म परिवर्तन बहुत बुरा अमल मानते हैं.
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