`या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से, कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है`
Jigar Moradabadi Poetry: जिगर मुराबादी असगर गोंडवी के साथ रहे. जिगर को उनके दौर में बहुत शोहरत मिली. उन्हें उनकी शख्सियत, गजल करने के रंग के लिए याद किया जाता है.
Jigar Moradabadi Poetry: जिगर मुरादाबादी उर्दू के बेहतरीन शायर थे. उनका असली नाम अली सिकंदर था. वह 6 अप्रैल 1890 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में पैदा हुए. जिगर को शायरी विरासत में मिली. उनके वालिद मौलवी अली नज़र और चचा मौलवी अली ज़फ़र दोनों शायर थे. उन्होंने तालीम हासिल करने के दौर में ही शेर व शायरी करने लगे. जब वह आगरा में थे तो उन्होंने खूब शायरी लिखी. 9 सितंबर 1960 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा.
दोनों हाथों से लूटती है हमें
कितनी ज़ालिम है तेरी अंगड़ाई
हसीं तेरी आँखें हसीं तेरे आँसू
यहीं डूब जाने को जी चाहता है
जो तूफ़ानों में पलते जा रहे हैं
वही दुनिया बदलते जा रहे हैं
तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं
हाँ मुझी को ख़राब होना था
इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा
आदमी काम का नहीं होता
आदमी आदमी से मिलता है
दिल मगर कम किसी से मिलता है
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यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तिरे बग़ैर
जैसे कोई गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिन
ज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं
इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का
क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम
हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं
दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
मिरी ज़िंदगी तो गुज़री तिरे हिज्र के सहारे
मिरी मौत को भी प्यारे कोई चाहिए बहाना
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
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