पहले हुआ खूब प्रचार, अब समस्या बन गई सैनिटरी नैपकिन; सरकार लेने जा रही ये फैसला
मासिक धर्म के दौरान महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला सैनिटरी नैपकिन ने पर्यावरण के लिए संकट पैदा कर दिया. इसलिए सरकार अब इसके विकल्प के तौर पर मेंस्ट्रुअल कप को बढ़ावा देने के लिए व्यापक स्तर पर मुहिम चलाने जा रही है.
तिरुवनंतपुरमः हर नया अविष्कार कुछ मौजूदा समस्याओं के समाधान के साथ ही भविष्य में किसी नए किस्म के संकट को जन्म देने के लिए तैयार होता है. उदाहरण के तौर पर आप सैनिटरी नैपकिन को ही ले सकते हैं. हाल के दिनों तक भारत सहित दुनिया के कई विकासशील और पिछड़े देशों में महिलाएं अपने मासिक धर्म के दिनों में सैनिटरी नैपकिन के बजाए किसी फटे पुराने, गंदे कपड़े या फिर राख का इस्तेमाल करती रही हैं. इस वजह से उन्हें संक्रमण का खतरा और यहां तक की कई बार अपनी जान भी गंवानी पड़ी है.
ऐसी महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित किया गया था. भारत में सैनिटरी नैपकिन के इस्तेमाल को लेकर 'फुल्लू’ और 'पैडमैन’ नाम से फिल्में भी बन चुकी है. लेकिन अब सैनिटरी नैपकिन भी समस्या बनती जा रही है और इससे निपटने के लिए केरल की सरकार ने एक दूसरे विकल्प के इस्तेमाल पर जोर देना शुरू कर दिया है. सरकार अब सैनिटरी नैपकिन के बजाए मेंस्ट्रुअल कप को प्राथमिकता दे रही है.
सैनिटरी नैपकिन से पैदा होता है हजारों टन कचरा
आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि पांच साल तक सिर्फ 5,000 महिलाओं द्वारा सैनिटरी नैपकिन के इस्तेमाल से 100 टन से ज्यादा नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा पैदा होता है. आंकड़ों के मुताबिक, केरल में हर साल हजारों टन गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरा पैदा होता है. 13-45 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं की संख्या को देखते हुए यह माना जा सकता है कि राज्य में 80 लाख से एक करोड़ महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का उपयोग कर रही हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य में सालाना कितने टन नैपकिन कचरा पैदा होता होगा. अगर देशभर की बात करें तो ये आंकड़े और भी डराने वाले हो सकते हैं. यह पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी खतरा पैदा करता है.
जाम हो रहे हैं सार्वजनिक शौचालय
सैनिटरी नैपकिन से न सिर्फ कचरे का ढेर बढ़ रहा है बल्कि इससे और भी कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही हैं. सार्वजनिक शौचालय इससे जाम हो रहे हैं. केरल की एक महिला सफाईकर्मी कहती हैं, “मुझे नहीं पता कि ये लोग (महिला यात्री) शौचालय में नैपकिन क्यों फेंक रहे हैं और इसे बंद कर रहे हैं! हम इसे साफ करने के लिए अभिशप्त हैं!" केरल के एक रेलवे स्टेशन का यह नजारा देश के किसी भी सार्वजनिक शौचालयों में देखा जा सकता है. पूरे भारत में स्कूलों और अस्पतालों सहित अधिकांश सार्वजनिक स्थानों पर कचरे के डिब्बे और शौचालय के सीट इस्तेमाल किए गए सैनिटरी नैपकिन से भरे मिल जाते हैं. देशभर के कई महिला-समर्थक समूह, कार्यकर्ता, पर्यावरणविद् और महिला विधायक माहवारी स्वच्छता प्रबंधन के लिए कुछ स्वस्थ और किफायती विकल्पों को लागू करने के लिए सरकार पर दबाव बना रही हैं.
केरल सरकार मेंस्ट्रुअल कप का करेगी प्रचार-प्रसार
भारत में पहली बार केरल की पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली सरकार जल्द ही महिलाओं के बीच मासिक धर्म कप को बढ़ावा देने के लिए जमीनी स्तर पर एक क्रांतिकारी मुहिम शुरू करेगी और इसके लिए 10 करोड़ रुपये का बजट भी रखा है. राज्य सरकार सैनिटरी नैपकिन के बजाय एम-कप को बढ़ावा देना चाहती है. इसके लिए सरकार स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थलों पर जागरूकता कार्यक्रम और अभियान चलाएगी. इससे पहले केरल के अलप्पुझा नगर पालिका द्वारा 2019 में लागू की गई 'थिंकल' परियोजना को सरकारी स्तर पर लागू देश में इस तरह के पहले एम-कप जागरूकता अभियानों में से एक माना गया है. इस अभियान के तहत, स्वास्थ्य चिकित्सकों, अनुभवी उपयोगकर्ताओं और सामुदायिक विकास समाज के सहयोग से केंद्रीय पीएसयू, हिंदुस्तान लाइफकेयर लिमिटेड (एचएलएल) द्वारा लगभग 5,000 मेंस्ट्रुअल कप वितरित किए गए थे.
महिलाएं तेजी से इसे अपना रही हैं
एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड की तकनीकी और संचालन निदेशक अनीता थम्पी ने कहा कि अलप्पुझा में 'थिंकल' परियोजना एक बड़ी सफलता थी, क्योंकि एक अध्ययन के मुताबिक, एम-कप का इस्तेमाल शुरू करने वाली महिलाओं में इसकी स्वीकृति दर 91.5 प्रतिशत थी. उन्होंने कहा कि शुरू में कुछ अनिच्छा और आपत्तियां थीं, लेकिन जिन्होंने इसका इस्तेमाल पूरे दिल से करना शुरू किया, उन्होंने इस स्थायी विकल्प को आखिरकार स्वीकार कर लिया.
गौरतलब है कि सैनिटरी नैपकिन के विकल्प के तौर पर मासिक धर्म कप का इस्तेमाल मासिक धर्म तरल पदार्थ को जमा करने के लिए किया जाता है. इसमें खास बात यह है कि इस कप का महिलाएं दोबारा इस्तेमाल कर सकती हैं. इससे कचरा नहीं फैलता है.
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