Barmer: `भारत रत्न` ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान की 133 जयंती; पेश की गई श्रद्धांजलि
Bharat Ratan Khan Abdul Ghaffar Khan: महान गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी और फ्रंटियर गांधी के नाम से मशहूर `भारत रत्न` ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान की 133 वीं जयंती पर उन्हें याद किया गया. इस मौक़े पर उनके नज़रियात पर रोशनी डाली गई.
Khan Abdul Ghaffar Khan: महान गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी और फ्रंटियर गांधी के नाम से मशहूर 'भारत रत्न' ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान की 133 वीं जयंती पर उन्हें याद किया गया. इस मौक़े पर निबंध प्रतियोगिता और पुरस्कार वितरण कार्यक्रम आयोजित किया गया. सोसाइटी द्वारा सीमांत गांधी को श्रद्धांजलि पेश करते हुए उनके बलिदानों और नज़रियात पर बारीकी से रोशनी डाली गई. कार्यक्रम का आयोजन थार मुस्लिम एजुकेशन वेलफेयर सोसायटी द्वारा स्थानीय जसनाथ एकेडमी स्कूल में किया गया.
मुस्लिम एजुकेशन वेलफेयर सोसाइटी की ओर से श्रद्धांजलि
थार मुस्लिम एजुकेशन वेलफेयर सोसाइटी के संयोजक अबरार मोहम्मद ने बताया कि सोसाइटी द्वारा भारत के स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों को याद कर आम लोगों में उनके त्याग, समर्पण और बलिदान को जीवंत रखने के उद्देश्य से कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है,ताकि अवाम के दिलों में मुल्क के प्रति प्रेम, आपसी भाईचारा व सामाजिक सद्भाव मज़बूत हो और हमारा मुल्क मज़ीद तरक़्क़ी करे. इस अवसर पर प्रोग्राम के चीफ़ गेस्ट समाजसेवी व हज ट्रेनर बच्चू खान कुम्हार ने ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान की जिंदगी के कई पहलूओं का ज़िक्र करते कहा कि वे पहले ग़ैर-भारतीय थे, जिन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाज़ा गया.
मुल्क की तक़सीम के मुख़ालिफ़ थे ख़ान
सोसाइटी के संयोजक अबरार मोहम्मद ने कहा कि ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान ने उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में जातीय समूहों ख़ासकर पठानों को एकजुट करके ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ एक अहिंसक आंदोलन चलाया था. जिसकी वजह से उन्हें सरहदी गांधी और सीमान्त गांधी भी कहा जाने लगा. साथ ही उन्हें बच्चा ख़ान और बादशाह ख़ान के नाम से भी पुकारा जाता है. अबरार मोहम्मद ने कहा कि उन्होंने हमेशा मुल्क की तक़सीम की मुख़ालेफत की. इस मौक़े पर टीचर दिनेश कुमार, जगदीश कुमार व बरकत ख़ान ने उनकी ज़िंदगी और कामों के बारे में बताया.
हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए किया काम
ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान और महात्मा गांधी एक दूसरे के बेहद क़रीबी माने जाते थे. दोनों ने मिलकर गंगा-जुमनी तहज़ीब और हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए काम किया. उन्होंने ने स्वतंत्र, अविभाजित और धर्मनिरपेक्ष भारत का सपना देखा था, लेकिन आज़ादी के वक़्त हिन्दुस्तान के तक़सीम ने ख़ान का दिल तोड़ दिया और वे बेहद मायूस हुए. उनकी कर्मभूमि उनके भारत देश से अलग हो गई थी. उनका दर्द दोनों तरफ के देशभक्तों ने बहुत शिद्दत से महसूस किया.
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