गुवाहाटी: असम की भाजपा हुकूमत के ज़रिए सरकारी मदरसों बंद करके उन्हें सरकारी स्कूलों में बदले जाने पर एक तरफ जहां कुछ लोग खुश हैं वहीं कुछ लोग हैं जो सरकार के इस फैसले की जमकर मुखालिफत कर रहे हैं. यहां तक कि कुछ माइनॉरिटी संस्थाओं ने धमकियां तक दे डाली हैं. 


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सरकार के इस फैसले के खिलाफ बोलते हुए माइनॉरिट यूनियन के करीमगंज जिले के सेक्रेटरी मनीर उद्दी अहमद ने कहा है कि मज़हबी तालीम के लिए सरकारी फंड देना आईन (संविधान) के दायरे में है. मुल्क में कई जगहों पर ऐसे ही सरकारी खर्च पर मज़हबी तालीम चल रही है. अहमद वार्निंग देते हुए कहा कि हम भी देखते हैं कि कैसे वे मज़हबी तालीम का फंड बंद करते हैं. 


असम की मदरसा स्टूडेंट्स यूनियन ने एक लीडर ने कहा कि अगर हमारे मदरसों को सरकारी फंड रोका गया तो हम खामोश नहीं बैठेंगे, इसके लिए हम पुरअमन (शांतिपूर्ण) तरीके से लड़ाई लड़ेंगे. वहीं मुस्लिम लीडर मनीरुद्दी भुइया ने कहा है कि यह एक सियासी साज़िश है. अगर कोई तबका (समुदाय) सराकारी खर्च से मज़हबी तालीम हासिल कर रहा है तो इसमें गलत क्या है. 


बता दें कि असम हुकूमत ने कहा है कि सरकारी खर्च पर कुरान की पढ़ाई नहीं कराई जा सकती है. अगर हमें ऐसा करना है तो हमें बाइबल और भागवत गीता को भी पढ़ाना चाहिए. उन्होंने कहा कि हम फैसले के ज़रिए बराबरी लाना चाहते हैं. इसके लिए नवंबर महीने में नोटिफिकेशन जारी किया जाएगा. इन मदरसों को स्कूल में तब्दील किया जाएगा. 


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