नई दिल्ली: 27 दिसंबर को मिर्जा गालिब का यौमे पैदाइश है. Mirza Ghalib का जन्म 27 दिसंबर 1796 को आगरा में हुआ था. वहीं 15 फरवरी को नई दिल्ली में उनका इंतेकाल हुआ था. Mirza Ghalib जन्म के 223 साल बाद भी Mirza Ghalib हैं. उनकी शायरी के दुनियाभर में करोड़ों लोग हैं. तो आइए आज के इस खास मौके पर हम आपकों उनके कुछ मशहूर अशआर से रूबरू कराते हैं.


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Mirza Ghalib Birth Anniversary: ग़ालिब की शायरी और जवानी पेंशन के मुक़दमें में उलझ कर रह गई


इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा 
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं 



मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का 
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले 



उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ 
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है 



रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल 
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है 



आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक 
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक 



हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे 
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और 



हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद 
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है 



मौत का एक दिन मुअय्यन है 
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती 



हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन 
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक 



हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी 
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती 



हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है 
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है 



निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन 
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले 



मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त 
मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ 


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