Muneer Niyazi Poetry: मुनीर नियाजी उर्दू के बेहतरीन शायर हैं. उनकी पैदाइश 19 अप्रैल 1928 को होशियारपुर में हुई. मुनीर को बचपन से किताबें पढ़ने का शौक था. उन्होंने सआदत हसन मंटो को खूब पढ़ा. बंटवारे के बाद उन्होंने पाकिस्तान में एक प्रकाशन बनाया, इसमें नुकसान हुआ. उन्होंने कई अखबारों और रेडियों में भी काम किया. 1960 में उन्होंने फिल्मों के लिए गाने लिखे. इससे उन्हें बहुत पहचान मिली. मुनीर दिखने में अच्छे थे इसलिए उन्हें अक्सर औरतें पसंद करती थीं. 


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ख़्वाब होते हैं देखने के लिए 
उन में जा कर मगर रहा न करो 


घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ 
छतों पर खिले फूल बरसात के 


देखे हुए से लगते हैं रस्ते मकाँ मकीं 
जिस शहर में भटक के जिधर जाए आदमी 


मुझ से बहुत क़रीब है तू फिर भी ऐ 'मुनीर' 
पर्दा सा कोई मेरे तिरे दरमियाँ तो है 


तेज़ थी इतनी कि सारा शहर सूना कर गई 
देर तक बैठा रहा मैं उस हवा के सामने 


अब किसी में अगले वक़्तों की वफ़ा बाक़ी नहीं 
सब क़बीले एक हैं अब सारी ज़ातें एक सी 


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थके लोगों को मजबूरी में चलते देख लेता हूँ 
मैं बस की खिड़कियों से ये तमाशे देख लेता हूँ 


आवाज़ दे के देख लो शायद वो मिल ही जाए 
वर्ना ये उम्र भर का सफ़र राएगाँ तो है 


दिल अजब मुश्किल में है अब अस्ल रस्ते की तरफ़ 
याद पीछे खींचती है आस आगे की तरफ़ 


ख़याल जिस का था मुझे ख़याल में मिला मुझे 
सवाल का जवाब भी सवाल में मिला मुझे 


रहना था उस के साथ बहुत देर तक मगर 
इन रोज़ ओ शब में मुझ को ये फ़ुर्सत नहीं मिली 


मुद्दत के ब'अद आज उसे देख कर 'मुनीर' 
इक बार दिल तो धड़का मगर फिर सँभल गया 


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