live in Relationship in Islam: इसलिए इस्लाम नहीं देता लिव इन में रहने की इजाजत, इन लोगों को होता है नुक्सान
live-in Relationship in Islam: इस्लाम में शादी से पहले जिन्सी ताल्लुकात कायम करना गलत है. इसके बारे में कुराम हदीस में जिक्र आया है. लिव इन में रहने से औरत और बच्चों को नुक्सान होता है.
live-in Relationship in Islam: इन दिनों लिव इन में रहने का क्रेज है. लिव इन यानी शादी के बिना लड़का या लड़की के साथ रहना. पहले ये पश्चिम का कल्चर हुआ करता था लेकिन अब भारत में भी लोग लिव इन में रहने लगे हैं. भारत में कितने लोग लिव इन में रहते हैं, इस बारे में कोई डेटा नहीं है. लेकिन महानगरों में यह आम है. हालांकि इस्लामी नुक्तेनजर से देखा जाए तो बिना निकाह के एक औरत या मर्द के साथ रहना और जिन्सी ताल्लुकात बनाना गलत है.
भारत में लिव इन पर पाबंदी नहीं
भारत में लिव इन में रहना कानूनी ऐतबार से गलत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2010 में खुशबू बनाम कन्निअमल (S.Khushboo vs Kanniammal) के मामले में कहा कि दो मर्द औरत बगैर निकाह के एक साथ रह सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "अगर दो जवान (मर्द औरत) एक साथ रहना चाहते हैं हो इस में जुर्म क्या है? यह मामला जु्र्म तक कहां पहुंचता है? एक साथ रहना जुर्म नहीं है. यह जुर्म हो भी नहीं सकता."
लिव इन में रहने वालों पर जिम्मेदारी नहीं
जानकार मानते हैं कि जो मर्द औरत बिना शादी या निकाह के रहते हैं. उनके बीच कानूनी या समाजी करार नहीं होता. उनका साथ कुछ दिन के लिए हो सकता है और मुम्किन है अगर दोनों चाहें तो काफी अरसे तक साथ रह सकते हैं. अगर कोई मर्द या औरत अपने पार्टनर के साथ बिना निकाह के साथ रह रहे हैं तो उनको ये अख्तियार होता है कि वह जब चाहे अलग हो सकते हैं. इसमें दोनों लोग आजादा होते हैं. किसी पर कोई भी पाबंदी नहीं होती.
लिव इन में रहने से खानदानी निजाम खराब होगा
खानदानी निजाम इसलिए जरूरी है कि शादी के बाद एक परिवार बनता है. इसके बाद रिश्ते बनते हैं. फिर एक माशरा बनता है. वह रिश्ते वक्त बे वक्त एक दूसरे काम आते हैं. अगर लोगों में खुदगर्जी आ जाए और मजे के लिए बिना शादी के एक दूसरे के साथ रहें तो खानदानी निजाम खराब हो जाएगा.
लिव इन से औरत का घाटा
यह आम राय है कि मर्द एक औरत के साथ सेक्स करके अलग हो जाता है. इसके बाद औरत बच्चे को 9 महीना पेट में रखती है. उसके बाद वह उसे 2 साल तक दूध पिलाती है. फिर बच्चे की परवरिश में अपना अच्छा खासा वक्त बिताती है. अगर औरत किसी के निकाह में रहती है तो वह उसका ख्याल रखता है. इस दौरान दोनों बच्चों की परवरिश करते हैं. अगर शादी या निकाह का बंधन न हो तो मर्द अपनी जिम्मेदारी से आजाद हो जाएगा. इसमें औरतों का घाटा है.
लिव इन से बच्चों को नुक्सान
इंसान मतलबी होता है. वह किसी से अपने मतलब के लिए मिलता है. इंसान अपना फायदा उठा कर अलग हो जाता है. ऐसे में अगर किसी के साथ बिना शादी के बंधन के जिन्सी ताल्लुक बनाए जाते हैं और उससे बच्चे पैदा होते हैं उनकी परवरिश ठीक से नहीं हो पाती है. उनहें परिवार और घर का प्यार नहीं मिल पाता.
इस्लाम की नजर में लिव इन
दरअसल इस्लाम खानदानी निजाम का हामी है. इसलिए वह परिवार को जोड़े रखने के लिए कई जतन करता है. खानदान को कमजोर करने के वाले सभी मामलों को दूर करने की पूरी कोशिश करता.
शादी या निकाह से पहले मर्द या औरत एक दूसरे से किसी भी तरह से जिन्सी ताल्लुक बनाता है तो वह जिना (रेप) कहलाता है. शादी, निकाह और जिना (रेप) पर कुरान और हदीस में भी जिक्र आया है.
कुरान में अल्लाह फरमाता है "तुम से पहले भी हम बहुत से रसूल भेज चुके हैं और उनको हमने बीवी बच्चों वाला ही बनाया है." (अलरअद:38)
अल्लाह ताला कुरान में एक जगह फरमाता है "इस तरह तुम उनसे बाकायदा निकाह करो. यह नहीं कि ऐलानिया जिना करो, या पोशीदा बदकारी करो." (अलमायदा: 5)
अल्लाह के रसूल ने फरमाया है कि "जो शख्स निकाह करने पर कादिर हो, फिर भी निकाह न करे वह हम में से नहीं."
हजरत मीमूना (रजि) से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (सल्ल0) ने फरमाया कि "मेरी उम्मत उस वक्त तक भलाई पर रहेगी जब तक उनमें जिना से पैदा होने वाले बच्चे आम न हो जाएंगे और जब उनमे जिना से पैदा होने वाले बच्चे आम हो जाएंगे तो अल्लाह ताला उन्हें अजाब में मुबतिला कर देगा." (मसनत इमाम अहमद)
अल्लाह के रसूल ने एक जगह फरमाया है कि "नौजवानों! तुममें से जो शख्स निकाह की जिम्मेदारियों को अदा कर सकता हो उसे शादी कर लेनी चाहिए, इससे निगाह काबू में आ जाती है और आदमी पाक दामन हो जाता है. हां जो शख्स निकाह की जिम्मेदारीयों को अदा करने में समर्थ न हो वह रोजे रखे क्योंकि रोजा उसकी यौन इच्छाएं कम कर देगा."
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