Gulzar Poetry: गुलजार का असली नाम 'सम्पूर्ण सिंह कालरा' है. गुलजार ने उर्दू कई बेहतरीन शे शेर लिखे हैं. उन्होंने हिन्दी फिल्मों के लिए कई बेहतरीन गाने लिखे हैं. गुलजार अच्छे कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक नाटककार भी हैं. गुलजार का काम हिन्दी, उर्दू और पंजाबी में हैं. गुलजार ने ब्रज भाषा, खड़ी बोली, मारवाड़ी और हरियाणवी में भी लिखा है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

देर से गूँजते हैं सन्नाटे 
जैसे हम को पुकारता है कोई 


ज़ख़्म कहते हैं दिल का गहना है 
दर्द दिल का लिबास होता है 


चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं 
दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें 


शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं 
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में 


जब दोस्ती होती है तो दोस्ती होती है 
और दोस्ती में कोई एहसान नहीं होता 


आग में क्या क्या जला है शब भर 
कितनी ख़ुश-रंग दिखाई दी है 


काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं 
काश ख़ुशबू की तरह रंग हिना का होता 


चूल्हे नहीं जलाए कि बस्ती ही जल गई 
कुछ रोज़ हो गए हैं अब उठता नहीं धुआँ 


यह भी पढ़ें: Tabish Dehlvi Hindi Shayari: ताबिश देहलवी के शेर, 'मंज़िलों को नज़र में रक्खा है'


यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता 
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता 


ये रोटियाँ हैं ये सिक्के हैं और दाएरे हैं 
ये एक दूजे को दिन भर पकड़ते रहते हैं 


ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह 
हो जाता है डाँवा-डोल कभी 


आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं 
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ 


भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आँखों में 
उजाला हो तो हम आँखें झपकते रहते हैं 


एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे 
दिल से इक ख़ौफ़ सा गुज़रा है बिछड़ जाने का 


गो बरसती नहीं सदा आँखें 
अब्र तो बारा मास होता है 


यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं 
सोंधी सोंधी लगती है तब माज़ी की रुस्वाई भी 


आँखों के पोछने से लगा आग का पता 
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ 


वो एक दिन एक अजनबी को 
मिरी कहानी सुना रहा था 


वो उम्र कम कर रहा था मेरी 
मैं साल अपने बढ़ा रहा था 


राख को भी कुरेद कर देखो 
अभी जलता हो कोई पल शायद 


Zee Salaam Live TV: