नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को धर्मांतरण कानून के एक मामले पर सुनवाई पर रजामंदी जताने के साथ ही कहा है कि हर धर्मांतरण को गैर कानूनी धर्मांतरण नहीं कहा जा सकता है. कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार की एक याचिका पर सुनवाई के लिए रजामंदी दी है, जिसमें जिलाधिकारी को सूचना दिए बिना शादी करने वाले अंतरधार्मिक जोड़ों पर मुकदमा चलाने से रोकने वाले हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी.


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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हर तरह के धर्मांतरण को गैर-कानूनी नहीं कहा जा सकता है. जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस सी.टी. रवि कुमार की बेंच ने मामले में नोटिस जारी किया है और मामले की सुनवाई सात फरवरी के लिए स्थगित कर दी है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कोई निर्देश पास करने से इनकार कर दिया है. मेहता ने कहा कि शादी का इस्तेमाल गैर कानूनी धर्मांतरण के लिए किया जाता है. हम इस पर आंख नहीं मूंद सकते हैं, लेकिन अभी कोई आदेश देने से इंकार कर दिया है. 


हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में राज्य सरकार को मप्र धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 10 के तहत उन युवाओं पर मुकदमा नहीं चलाने का निर्देश दिया था, जो अपनी मर्जी से शादी करते हैं. हाईकोर्ट ने 14 नवंबर को कहा था कि धारा 10, जो धर्मांतरण के इच्छुक नागरिक के लिए जिला मजिस्ट्रेट को इस संबंध में (पूर्व) घोषणा पत्र देना अनिवार्य बनाती है. हमारी राय में इस अदालत के पूर्वोक्त निर्णयों की पूर्व दृष्टि से असंवैधानिक है.’’


मप्र धार्मिक स्वतंत्रता कानून गलतबयानी, प्रलोभन, बल प्रयोग की धमकी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, विवाह या किसी अन्य धोखाधड़ी के माध्यम से धर्म परिवर्तन को निषेध करता है. एमपीएफआरए 2021 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली सात याचिकाओं पर हाईकोर्ट का अंतरिम निर्देश आया था. याचिकाकर्ताओं ने कानून के तहत किसी के खिलाफ मुकदमा चलाने से राज्य को रोकने के लिए अंतरिम राहत की मांग की थी. कोर्ट ने राज्य सरकार को याचिकाओं पर अपना क्रमवार जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का वक्त दिया था और कहा था कि याचिकाकर्ता उसके बाद 21 दिनों के अंदर जवाब दाखिल कर सकते हैं.


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