Nun Meem Rashid Poetry: पढ़ें नून मीम राशिद के चुनिंदा शेर
Nun Meem Rashid Poetry: नून मीम राशिद उर्दू के ऐसे शायर हैं जिन्होंने ऐसे जज्बातों को दाखिला दिलाया जो पहले मुम्किन नहीं था. यहां पेश हैं नून मीम राशिद की शायरी, पढ़ें
Nun Meem Rashid Poetry: नजर मुहम्मद राशिद या नून मीम राशीद उर्दू के मशहूर पाकिस्तानी शायर थे. उन्होंने उर्दू शायरी को पुराने बंधनों से आज़ाद करने का बड़ा काम किया. उन्होंने सिर्फ शिल्प की दृष्टि से ही उर्दू कविता को आज़ाद नहीं किया बल्कि उर्दू शायरी में उन जज्बातों को भी दाखिला दिलाया, जो इससे पहले मुम्किन नहीं था.
ज़िंदगी तो तुम भी हो ज़िंदगी तो हम भी हैं!
ज़िंदगी से डरते हो?
आदमी से डरते हो
आदमी तो तुम भी हो आदमी तो हम भी हैं
''ख़्वाब ले लो ख़्वाब....''
सुब्ह होते चौक में जा कर लगाता हूँ सदा
ख़्वाब असली हैं कि नक़ली?''
यूँ परखते हैं कि जैसे उन से बढ़ कर
ख़्वाब-दाँ कोई न हो!
ऐ मिरी हम-रक़्स मुझ को थाम ले
ज़िंदगी से भाग कर आया हूँ मैं
डर से लर्ज़ां हूँ कहीं ऐसा न हो
रक़्स-गह के चोर दरवाज़े से आ कर ज़िंदगी
ढूँड ले मुझ को, निशाँ पा ले मेरा
और जुर्म-ए-ऐश करते देख ले!
सोचता हूँ कि जला देगी मोहब्बत उस को
वो मोहब्बत की भला ताब कहाँ लाएगी
ख़ुद तो वो आतिश-ए-जज़्बात में जल जाएगी
और दुनिया को इस अंजाम पे तड़पाएगी
सोचता हूँ कि बहुत सादा-ओ-मासूम है वो
मैं उसे वाक़िफ़-ए-उल्फ़त न करूँ
ऐ जहाँ-ज़ाद,
नशात उस शब-ए-बे-राह-रवी की
मैं कहाँ तक भूलूँ?
ज़ोर-ए-मय था कि मेरे हाथ की लर्ज़िश थी
कि उस रात कोई जाम गिरा टूट गया
तुझे हैरत न हुई!
कि तिरे घर के दरीचों के कई शीशों पर
उस से पहले की भी दुर्ज़ें थीं बहुत
तुझे हैरत न हुई!
ऐ इश्क़-ए-अज़ल-गीर ओ अबद-ताब मेरे भी हैं कुछ ख़्वाब
मेरे भी हैं कुछ ख़्वाब
उस दौर से इस दौर के सूखे हुए दरियाओं से
फैले हुए सहराओं से और शहरों के वीरानों से
सुलैमाँ सर-ब-ज़ानू और सबा वीराँ
सबा वीराँ, सबा आसेब का मस्कन
सबा आलाम का अम्बार-ए-बे-पायाँ!
गयाह ओ सब्ज़ा ओ गुल से जहाँ ख़ाली
उस का चेहरा, उस के ख़द्द-ओ-ख़ाल याद आते नहीं
इक शबिस्ताँ याद है
इक बरहना जिस्म आतिश-दाँ के पास
फ़र्श पर क़ालीन, क़ालीनों पे सेज