Poetry on Letter: `अंधेरा है कैसे तिरा ख़त पढ़ूं` ख़त पर चुनिंदा शेर
उर्दू शायरी में खत का अहम किरदार रहा है. कई शायरों ने ख़त को अपनी शायरी का मौजूं बनाया है और उस पर अपनी क़लम चलाई है. आज हम आपके लिए खत पर कुछ बेहतरीन शेर लेकर आएं हैं.
Poetry on Letter: आज हमारे पास लोगों से बात करने के लिए कई साधन मौजूद हैं. मैसेज और कॉल के जरिए हम दुनिया के दूसरे कोने में बैठे इंसान से बात कर सकते हैं. लेकिन एक वक्त था जब हमें दूर बैठे शख़्स से बात करने के लिए घटों, दिनों और महीनों का इंतजार करना पड़ता था. तभी बात हो पाती थी. और यह बात ख़त के ज़रिए होती थी. ख़त में हम एक दूसरे को पैगाम के साथ-साथ ख़ुशबू भी भेज सकते थे. अक्सर महबूब और महबूबा बात करने के लिए ख़त का इस्तेमाल किया करते थे. ख़त को मौजूं बना कर कई शायरों ने शायरी लिखी है. यहां पेश हैं ख़त पर बेहतरीन शेर.
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अंधेरा है कैसे तिरा ख़त पढ़ूँ
लिफ़ाफ़े में कुछ रौशनी भेज दे
-मोहम्मद अल्वी
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ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर
आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है
-फ़ानी बदायुनी
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नामा-बर तू ही बता तू ने तो देखे होंगे
कैसे होते हैं वो ख़त जिन के जवाब आते हैं
-क़मर बदायुनी
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तिरा ख़त आने से दिल को मेरे आराम क्या होगा
ख़ुदा जाने कि इस आग़ाज़ का अंजाम क्या होगा
-मोहम्मद रफ़ी सौदा
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मज़मून सूझते हैं हज़ारों नए नए
क़ासिद ये ख़त नहीं मिरे ग़म की किताब है
-निज़ाम रामपुरी
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ग़ुस्से में बरहमी में ग़ज़ब में इताब में
ख़ुद आ गए हैं वो मिरे ख़त के जवाब में
-दिवाकर राही
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कैसे मानें कि उन्हें भूल गया तू ऐ 'कैफ़'
उन के ख़त आज हमें तेरे सिरहाने से मिले
-कैफ़ भोपाली
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हम पे जो गुज़री बताया न बताएँगे कभी
कितने ख़त अब भी तिरे नाम लिखे रक्खे हैं
-अज्ञात
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एक मुद्दत से न क़ासिद है न ख़त है न पयाम
अपने वा'दे को तो कर याद मुझे याद न कर
-जलाल मानकपुरी
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उस ने ये कह कर फेर दिया ख़त
ख़ून से क्यूँ तहरीर नहीं है
-कैफ़ भोपाली
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