सद्दाम हुसैन के खून से लिखा गया 605 पन्नों का कुरान
दो दहाई से भी ज्यादा वक्त तक ईराक पर हुकूमत करने वाले सद्दाम हुसैन को आज ही के दिन यानी 5 नवंबर को अदालत की तरफ से फांसी की सजा सुनाई गई थी. इस मौके पर हम आपको उनसे जुड़ी एक दिलचस्प जानकारी बताने जा रहे हैं.
Saddam Hussein Blood Quran: सद्दाम हुसैन, एक ऐसा नाम जिसने अमेरिका नाक में दम कर दिया था. वो कुछ लोगों के लिए मसीहा, तो कुछ लोगों के लिए तानाशाह नेता. लेकिन हम इस मुद्दे को छोड़कर सद्दाम हुसैन से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी बताने जा रहे हैं. दो दशक से ज्यादा वक्त तक इराक पर हुकूमत करने वाले सद्दाम हुसैन को 30 दिसंबर 2006 को फांसी दी गई थी. इसके अलावा 5 नवंबर 2006 को उन्हें अदालत की तरफ से फांसी की सजा सुनाई गई थी.
हर हफ्ते निकलवाते थे खून
सद्दाम हुसैन ने एक खत्तात (कैलीग्राफर) को बुलाकर अजीब फरमाइस कर डाली. वो फरमाइश यह थी कि वो चाहते हैं कि एक ऐसा कुरान लिखा जाए, जिसमें स्याही जगह पर उनके खून का इस्तेमाल हुआ हो. इस काम के लिए सद्दाम हुसैन ने करीब 2 साल हर अपना खून दिया. इसके लिए वो तकरीबन हर हफ्ते एक नर्स के पास जाकर अपना बाज़ू (हाथ) पेश करते थे, वो नर्स उनके हाथ से खून निकाला करती थी. बीबीसी उर्दू में छपी एक खबर के मुताबिक इस काम पर होने वाली लागत के साथ-साथ कई अन्य जानकारियां भी विवादित हैं, लेकिन दावों के मुताबिक इस कुरान के 605 पेज लिखने के लिए सद्दाम हुसैन ने तकरीबन 24 लीटर खून दिया था.
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मीडिया को जारी किया था खत
इस रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर कंटेम्पररी अरब स्टडीज के डायरेक्टर जोसेफ ससून का कहना है कि कुरान के पूरा होने के बाद इसे सद्दाम हुसैन के सामने बड़ी धूमधाम से पेश किया गया. इसको लेकर सद्दाम हुसैन ने मीडिया के लिए जारी किए गए एक खत में कहा था कि मेरी जिंदगी के खतरों से भरी हुई है, जिसमें मेरा बहुत ज्यादा खूब बर्बाद हो सकता था लेकिन मेरा कम ही खून बर्बाद हुआ. फिर मैंने दर्ख्वास्त की कि अल्लाह की किताब के अल्फाज़ मेरे खून से लिख कर नजराना पेश किया जा सके.
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क्या बताई जा रही है वजह:
अब इतना कुछ जानने के बाद आपके मन में यह सवाल भी जरूर आया होगा कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया? वो अपने खून से कुरान लिखकर क्या साबित करना चाहते थे? तो इसको लेकर लोगों की अलग-अलग राये है. बीबीसी ने सोसो के हवाले से बताया कि वो सियासी मकसद के लिए मज़हब का सहारा ले रहे थे. सासोन का कहना है कि मुझे नहीं लगता कि सद्दाम हसैन हकीकत में ज्यादा मज़हबी हो गए थे. उन्होंने सियासी मकसद हासिल के लिए यह दिखावा किया था.
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि 1996 की जंग में सद्दाम हुसैन के बेटे की जान बच गई थी. जिसकी वजह से उन्होंने खुदा शुक्र अदा करने के लिए इतना खून देकर अल्लाह के कलाम को लिखवाया था.
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