Sahir Ludhianvi Birthday Special: संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
एक धुंध से आना है
एक धुंध में जाना है


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आओ कोई ख्वाब बुनें कल के वास्ते- कहने वाले साहिर लुधियानवी अपने शब्दों से ख्वाब बुनते थे. उनकी रचनाएं जैसे अभी ना जाओ छोड़ कर, कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया, से हर पीढ़ी अपने  जज्बातों को बखूबी जोड़ लेती हैं.  वर्तमान दौर में भी साहिर उतने ही प्रासंगिक और मकबूल हैं, क्योंकि उनके लफ्जों में हकीकत, ख्वाब, रूमानियत, सियासत और तकलीफ सब कुछ समाया हुआ है. ताउम्र दर्द जिसका साथी रहा हो तो, उसके अल्फाज जरूर इंसानी दिलों को छूएंगे. साहिर ने हर जज्बात को शब्दों में बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है. उनका दायरा काफी विस्तृत था, वह खुद को किसी खास खांचे में नहीं रखते थे. उन्होंने अपनी नज्मों के जरिए इंसानी जिंदगी के तमाम पहलुओं को उकेरते हुए आम आदमी, किसान, मजदूर, मजबूर, बेबस और मजलूम सभी के भावों का मुकम्मल बयां किया है. 


जीवन परिचय
8 मार्च 1921 को अविभाजित पंजाब के लुधियाना में जन्में, अब्दुल हई उर्फ साहिर लुधियानवी एक संपन्न पृष्ठभूमि से आते थे. मगर माता-पिता के अनबन के कारण इनका बचपन काफी परेशानियों में बीता. लाहौर में कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़ कर, आजीविका के लिए उन्होंने तमाम तरह की छोटी-मोटी नौकरियां कीं.
शाहकार, सवेरा, शाहराह और प्रीतलड़ी जैसी पत्रिका का संपादन भी किया. उसके बाद वह दिल्ली रहने चले गए, मगर उनका इंतजार मायानगरी मुंबई कर रही थी.  1949 में फिल्म आजादी की राह पर के लिए गीत लिखे. लेकिन फिल्म नौजवान में लता द्वारा गाया गया उनका गीत चलने लगी ठंडी हवा से उनकी फिल्मी पहचान बनी. लेकिन गुरुदत्त की प्यासा ने उन्हें हर दिल अजीज बना दिया. इसके बाद साहिर नित्य सफलता के नए पायदान पर चढ़ते हुए एक मकबूल शायर के साथ-साथ एक बेजोड़ गीतकार भी बन गए. ताउम्र अविवाहित रहने वाले साहिर की निजी जिंदगी बेहद ही तन्हा रही. साहिर का नाम कई महिलाओं के साथ जोड़ा गया. मगर अमृता प्रीतम के साथ इनका रूहानी रिश्ता रहा, इस बात की तस्दीक स्वयं अमृता प्रीतम ने अपनी आत्मकथा रसीदी टिकट में की हैं. इसके बाद गायिका-अभिनेत्री सुधा मल्होत्रा के साथ भी इनका नाम जोर-शोर से लिया गया. जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला- उनकी खुद की लिखी यह पंक्ति उन पर खूब फिट बैठती हैं. मगर साहिर ने औरतों के जज्बात की हमेशा इज्जत की, इस बात की पुष्टि उनके लिखें गाने औरतों ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाजार दिया से होती हैं. 25 अक्टूबर 1980 को साहिर इस दुनिया को अल्विदा कह गए. 


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साहिर के गीत
साहिर के गीत के बोल काफी मायने के होते हैं. साहिर ने अपने हर भोगे हुए यथार्थ को अपने नज्मों और गीतों में पिरोया है. साथी हाथ बढ़ाना जैसे गीत लिखकर साहिर ने सामाजिक सहायता को बढ़ावा दिया. उसी प्रकार जो झूठी देशभक्ति और शान दिखाते हैं ,उनसे साहिर पूछते हैं-
जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं.- आज संप्रदायिकता और धर्मांधता के दौर में उनके लिखें शब्द ना तू हिंदू बनेगा ना मुसलमान बनेगा बड़े ही मौजूं हैं.
अल्लाह ईश्वर तेरो नाम, मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, मैं पल दो पल का शायर हूं जैसे तमाम लोकप्रिय गीतों को साहिर लुधियानवी ने लिखा.


सम्मान
दो बार सिनेमा के प्रतिष्ठित पुरस्कार फिल्म फेयर अवॉर्ड से सम्मानित हुए. पहली बार 1964 में, उन्हें फ़िल्म ताजमहल के गीत "जो वादा किया" के लिए,फिर दूसरी बार 1977 में, उन्हें फिल्म कभी-कभी के गीत "कभी कभी मेरे दिल में" के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गीतकार के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. सरकार द्वारा 1971 में उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.


रचनाएं
1943 में लाहौर में रह रहे साहिर की पहली किताब 'तल्ख़ियां' प्रकाशित हुई. इसके बाद 'परछाइयां’ 'गाता जाए बंजारा’, 'आओ कि कोई ख्वाब बुनें’ और 'कुल्लियात-ए-साहिर’ आदि प्रकाशित हुए.


और अंत में
साहिर का विवादों से पुराना नाता रहा हैं, उनके ना रहने के बाद भी विवाद उनका पीछा नहीं छोड़ रहे हैं. 2011 में लुधियाना में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर तत्कालीन अकाली दल की सरकार द्वारा शुरू की गई आवासीय परियोजना का नाम बदलकर कर साहिर लुधियानवी के नाम पर रखे जाने का फैसला वर्तमान कांग्रेस सरकार ने किया, तो विपक्षी दलों ने एतराज जताना शुरू कर दिया.


ए निशांत
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं. 


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