Singer Suraiya:  सुरैया, नूरजहां और शमशाद बेगम की गायकी और अदाकारी के दीवाने सरहद के दोनों तरफ बसते थे. सुरैया का जिक्र हो और सदाबहार रोमांटिक अभिनेता देवानंद का नाम ना आए, यह संभव ही नहीं. कहते हैं कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना. पर देवानंद और सुरैया के खूबसूरत रिश्ते में मजहब दोनों के बीच में आड़े आ गया और एक सुखद प्रेम कथा का दुखांत हो गया. कारण जो भी रहा हो, पर एक खूबसूरत जोड़ी बनते-बनते रह गई. पर दोनों प्यार करने वालों के मन में एक कसक ताउम्र रहीं.


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सुरैया की आवाज जितनी सुरीली थी, अदाकारी उतनी ही दमदार. 15 जून 1929 को जन्मीं सुरैया का पूरा नाम सुरैया जमाल शेख था. उन्होंने अपने सशक्त अभिनय के दम पर तीन दशकों तक हिंदी सिने जगत पर राज किया. इस दौरान उन्होंने 67 फिल्मों में अभिनय के साथ-साथ 338 फिल्मों में पाश्वर्वगायन भी किया. 40-50 का दशक उनके करियर का स्वर्णिम काल था. इस दौरान वह सबसे ज्यादा मेहनताना लेने वाली अदाकारों में से एक थी. उन्होंने 'अनमोल घड़ी', 'मिर्जा गालिब', 'परवाना', 'नाटक,विद्या', 'जीत', 'दिल्लगी' जैसी कई हिट फिल्मों में काम किया.


मशहूर जोड़ियां 


पचास के दशक में हिन्दी सिनेमा के तीन शीर्ष अभिनेता अपने दमदार अदाकारी की वजह से पूरे फिल्म जगत पर छाए हुए थे, यह अभिनेता थे- दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानन्द. इन तीनों मशहूर अभिनेताओं की प्रसिद्ध ऑनस्क्रीन जोडियां भी थी, जिसे दर्शकों द्वारा भरपूर प्यार मिलता था. यह जोड़ियां थीं दिलीप कुमार, मधुबाला, राजकपूर, नरगिस और देवानन्द, सुरैया की. रुपहले पर्दे पर बनी यह जोड़ियां एक दूसरे के निजी जिंदगी में भी काफी दखल देती थीं. दुर्भाग्य देखिए इन जोड़ियों का कि एक भी जोड़ी निजी जिंदगी में एक ना हो सकीं. सभी ने अपने जोड़ीदारों से इतर अलग-अलग शादियां की जबकि सुरैया आजीवन अविवाहित रही.


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देवानंद के साथ निजी रिश्ते


सुरैया के जोड़ीदार देवानंद से उनके मोहब्बत के चर्चे आज भी होते हैं. देवानंद ने अपनी आत्मकथा रोमांसिंग विद लाइफ में सुरैया के साथ अपने निजी रिश्ते को सार्वजनिक तौर पर स्वीकारा है. जब देवानंद खुद को फिल्मों में स्थापित कर रहे थे, तो सुरैया उस समय तक इंडस्ट्री में अपनी धाक जमा चुकी थी. सुरैया और देवानंद ने एक साथ कई फिल्में की, इसी दरमियान दोनों के बीच की नजदीकियां बढ़ीं. वह देवानंद के साथ निजी रिश्ते में काफी कम समय रहीं. 1948 में फिल्म विद्या की शूटिंग के वक्त देव साहब और सुरैया की मुलाकात हुई, इसके बाद दोनों ने 1951 तक कुल 7 फिल्मों में एक साथ काम किया. पर अपने माता-पिता की इकलौती संतान सुरैया ने अपनी परिवार वालों की आपत्ति के बाद देवानन्द से सारे रिश्ते तोड़ लिए. उसके बाद 1954 में देव साहेब ने कल्पना कार्तिक से शादी कर ली. लेकिन सुरैया ने अपनी अंतिम सांस तक अपनी मोहब्बत के एहसास को अपने सीने में बरकरार रखा. 


नेहरू द्वारा प्रशंसा


अपनी कलात्मक दृष्टि के लिए प्रसिद्ध भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंड़ित जवाहरलाल नेहरू भी सुरैया के प्रशंसकों में से एक थे. वह उनकी गायकी और अदाकारी के कायल थे. 1954 में सोहराब मोदी द्वारा निर्देशित फिल्म मिर्जा गालिब में सुरैया ने मोती बेगम का और दिग्गज अभिनेता भरतभूषण ने मिर्जा गालिब की भूमिका निभायी थी. इस फिल्म की स्क्रीनिंग पर प्रधानमंत्री ने सुरैया से कहा था- तुमने गालिब की रुह को जिंदा कर दिया. इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता. वर्ष 1996 में सुरैया को स्क्रीन लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया था. 


और अंत


वह अपने जीवन के अंतिम समय में अपनी तमाम स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रही थी. 31 जनवरी 2004 को वह इस फानी दुनिया से रुखसत कर गयी.


ए निशांत
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.


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