AMU: जानिए क्या है टाइम कैप्सूल, गणतंत्र दिवस पर AMU में किया जाएगा दफन
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के तरजुमान डॉ राहत अबरार ने बताया कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अपनी स्थापना के 100 साल पूरे कर रही है.
अलीगढ़: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के शताब्दी वर्ष प्रोग्राम पूरे होने के उपलक्ष्य में गणतंत्र दिवस पर जमीन में टाइम कैप्सूल दफन किया जाएगा. इस कैप्सूल में सन 1877 से लेकर 2020 तक के यूनिवर्सिटी की तारीख को समेटा गया है.
26 जनवरी को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के विक्टोरिया गेट के सामने पार्क में दफन हो रहे इस कैप्सूल के आयोजन में एएमयू के वॉइस चांसलर प्रोफेसर तारिक मंसूर भी शामिल होंगे. ये प्रोग्राम दिन में 11 बजे होगा.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के तरजुमान डॉ राहत अबरार ने बताया कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अपनी स्थापना के 100 साल पूरे कर रही है. इस मौके पर एक फैसला लिया गया कि एक टाइम कैप्सूल दफन किया जाए. इस कैप्सूल में बानी (संस्थापक) सर सैयद अहमद खान, एएमयू कॉलेज किस तरह कायम हुआ उसके बारे में पूरी जानकारी होगी.
सभ डाक्यूमेंटों को किया गया प्रिजर्व
1920 में जब यह यूनिवर्सिटी बनी उसके बारे में और 2020 तक इसकी क्या गतिविधियां रही, इन सब डाक्यूमेंटों को हमने प्रिजर्व किया है. उसमें गैस भरी गई है उसको विक्टोरिया गेट के सामने दफन किया जाएगा. इस ऑनलाइन कार्यक्रम में यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर शामिल होंगे.
डॉ राहत अबरार ने बताया कि आगे आने वाले 100 साल के बाद यहनिकाली जाएगी तो पता चलेगा कि इस संस्थान ने 100 साल में क्या तरक्की की थी. कैप्सूल बनाते समय इस बात का ध्यान रखा गया है कि जब इसको खोला जाए, तब इसके डिकोड करने में किसी तरह की समस्या न आए. इसलिए कैप्सूल के अंदर जो भी सामग्री रखी गई है, वह प्रिंटेड अवस्था में है.
क्या है टाइम कैप्सूल
टाइम कैप्सूल साइज में एक कंटेनर की तरह होता है, जिसे विशेष प्रकार के तांबे से बनाया जाता है। इसकी विशेषता ये है कि सालों तक खराब नहीं होता. उसे जमीन के अंदर गहराई में दफनाया जाता है. लंबाई करीब तीन फुट होती है. टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम और तापमान का सामना करने में सक्षम होता है. इसे किसी ऐतिहासिक स्थल या स्मारक की नींव में काफी गहराई में दफनाया जाता है. काफी गहराई में होने के बावजूद भी हजारों साल तक न तो उसको कोई नुकसान पहुंचता है और न ही वह सड़ता-गलता है. टाइम कैप्सूल के जरिए उस ऐतिहासिक स्थल या स्मारक की भविष्य में पहचान साबित करना आसान होता है.
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