शोएब रज़ा/दिल्ली: दुनिया भर के कई मुल्कों के साथ साथ भारत में भी कोरोना वायरस की वजह से लॉक डाउन है। स्कूल, कॉलेज, दफ्तर और सभी मज़हबी इबादतगाह भी बंद है। इसी कोरोना वायरस के कहर के बीच इस्लाम के नज़दीक बेहद मुक़द्दस रात यानी शब-ए-बरात भी आ गई है। ये रात बेहद अफ़ज़ल है और इस्लाम में माना जाता है कि इस रात में अपने रब के सामने हाथ उठाकर मांगी गई दूआ ज़रूर कबूल होती है।


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इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक शाबान महीने की 15वीं तारीख को जो रात आती है, वो शब ए बरात है। इस दिन लोग रात भर जागकर इबादत करते हैं। अल्लाह के बंदे नमाज़, तिलावते कुरान, ज़िक्र और तस्बीह वगैरा का खास एहतिमाम करते हैं और अपने रब से हाथ फैलाकर दुआ मांगते है। शब-ए-बारात में दो लफ्ज़ है, जिसमें शब का मतलब रात और बरात का मतलब बरी है।


इस्लाम में शब ए बरात की इतनी अहमियत क्यों?
शब ए बरात की रात को इस्लाम की सबसे अहम रातों में शुमार किया जाता है। इस रात को फैसले की रात भी कहते हैं। माना जाता है कि अल्लाह इंसान की जिंदगी-मौत और आमाल मुतअल्लिक फैसले भी इसी रात को करता है इसलिए शब ए बरात की रात को इबादत करके अगले दिन का रोज़ा भी रखा जाता है, हालांकि ये रोज़ा फ़र्ज़ नहीं है।


तौबा कबूल करने की रात
इस रात को सच्चे दिल से अगर इबादत की जाए और गुनाहों से तौबा की जाए तो अल्लाह इंसान के हर गुनाह को माफ़ देता है। यूं तो हर साल इस रात को मुसलमान मर्द मस्जिदों में जाकर इबादत करते हैं और ख्वातीन घरों में, लेकिन इस बार लॉक डाउन के चलते सभी मुस्लिम उलेमाओं ने अपील की है कि कोई भी घरों से बाहर ना निकले। घरों में रहकर ही इबादत करें और अल्लाह से दुआ मांगे। ना ही कब्रिस्तान जाए।


घरों से बाहर ना निकलें
मुल्क की तकरीबन सभी मुस्लिम तंजीमों ने इस बार लॉक डाउन के चलते मुसलमानों से अपील की है कि वो शब ए बरात की रात घरों से बिल्कुल बाहर ना निकलें। घरों में रहकर ही इबादत करें। इस मौके पर कुछ लोग तरह-तरह के पकवान भी बनाते हैं.


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