Who is Kale Khan: काले खान का नाम सुनते ही लोगों के दिमाग में दिल्ली के बस स्टैंड की तस्वीर बनती है. हालांकि, अब इस बस स्टैंड का नाम बदल दिया गया है. केंद्र सरकार ने दिल्ली के सराय काले खां आईएसबीटी चौक का नाम बदलकर बिरसा मुंडा चौक कर दिया है. यूनियन मिनिस्टर ऑफ हाउसिंग एंड अरबन अफेयर मनोहर लाल खट्टर ने बिरसा मुंडा की जयंती के मौके पर सराय काले खां चौराहे का नाम बदलकर “भगवान बिरसा मुंडा चौक” करने का फैसला किया है.


पहले जानते हैं कि क्या होता है सराय?


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क्या आप जानते हैं कि काले खां कौन थे और दिल्ली के एक इलाके का नाम सराय काले खां कैसे पड़ा? आज हम आपको इसके बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं. इससे पहले जान लेते हैं कि आखिर सराय क्या होता है. सराय उस जगह को कहा जाता है जहां लोग रुकते हैं और रेस्ट करते हैं.


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काले खां कौन थे?


पुराने वक्त में जब लोग अलग-अलग जगहों से दिल्ली आया करते ते तो वह यहां रुकते थे और फिर आगे का सफर किया करते थे. ऐसा माना जाता है कि इस बस स्टैंड का नाम एक संत के नाम पर रखा गया. जो शेर शाह सूरी के जमाने में दिल्ली में रहा करते थे. उनकी मौत के बाद उनकी दरगाह भी बनाई गई, जो एयरपोर्ट के टर्मिनल-2 पर है. ऐसा माना जाता है कि इन्हीं संत ने इस सराय को बनाया जिनके नाम पर इस बस स्टैंड का नाम रखा गया था.


दो और चीजें काले खां के नाम पर


इसके अलावा दो और चीजें काले खां के नाम पर है.  आइये जानते हैं उनके बारे में.


काले खान का गुंबद


यह मकबरा साउथ एक्सटेंशन में है. यह दरिया खान लोहानी के पिता मुबारक खान लोहानी का है, जो बहलोल लोधी के राज के दौरान मुख्य न्यायाधीश थे. इस मकबरे को काले खान क्यों कहा जाता है, इसकी वजह अभी तक साफ नहीं है.


हवेली काले खान


यह हवेली महरौली में मौजूद है. माना जाता है कि यह हवेली बहादुर शाह ज़फ़र के आध्यात्मिक सलाहकार की थी. काले साहब एक सम्मानित व्यक्ति थे जिनके कई अनुयायी थे, जिनमें प्रसिद्ध कवि ग़ालिब भी शामिल थे. बल्लीमारान में भी उनकी एक हवेली थी. महरौली में बनी हवेली का केवल एंट्री गेट ही बचा है और अब यह खंडहर हो चुकी है.


झारखण्ड चुनाव से क्या है इसका कनेक्शन 


केंद्र सरकार ने नाम बदलने का ये फैसला 15 नवम्बर को लिया है, जिस  दिन बिरसा मुंडा का जन्मदिन था. वो एक स्वतंत्रता सेनानी थे लेकिन झारखण्ड के आदिवासी समुदाय के लोग बिरसा मुंडा का भगवान की तरह पूजते हैं. भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को रांची के उलिहातु गांव में एक आदिवासी परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम सुगना मुंडा और मां का नाम करमी मुंडा था. उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई मिशनरी स्कूल से की थी.  पढ़ाई के दौरान उन्होंने देखा कि अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर अत्याचार किए जा रहे थे. उन्होंने इस जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई और 1895 में भगवान बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ लगान माफी आंदोलन शुरू किया. इसके बाद उन्हें गिरफ्तार भी किया गया. 1900 तक भगवान बिरसा मुंडा और अंग्रेजों के बीच जंग होते रहे. झारखण्ड में इस वक़्त विधानसभा चुनाव चल रहा है. पहले चरण की वोटिंग हो चुकी है. एक चरण की वोटिंग अभी और होनी है. इसी बीच केंद की भाजपा सरकार ने दिल्ली में सराय काले खान बस अड्डे का नाम बदलकर बिरसा मुंडा के नाम पैर कर दिया है, ताकि अगले फेज की वोटिंग में झारखण्ड में भाजपा को इसका फायदा मिल सके.. आदिवासी समाज भाजपा को वोट करे.