नई दिल्लीः हिंदुस्तान में हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है, जो महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक पहल है.भारत सरकार हर साल इस मौके पर नवाचार, सामाजिक सेवा, शैक्षिक योग्यता, खेल, कला एवं संस्कृति और बहादुरी जैसी छह श्रेणियों में बच्चों को उनकी असाधारण उपलब्धि के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (पीएमआरबीपी) पुरस्कार प्रदान करती है. इन पुरस्कारों में कई श्रेणियों के अवार्ड शामिल हैं. इनमें भारत पुरस्कार-1987, गीता चोपड़ा पुरस्कार-1978, संजय चोपड़ा पुरस्कार-1978, बापू गायधनी पुरस्कार-1988 और सामान्य राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार-1957 शामिल हैं. इस वर्ष, बाल शक्ति पुरस्कार की विभिन्न श्रेणियों के तहत देश भर से 29 बच्चों को पीएमआरबीपी-2022 के लिए चुना गया है. पुरस्कार विजेता हर साल गणतंत्र दिवस परेड में भी भाग लेते हैं. पीएमआरबीपी के प्रत्येक पुरस्कार विजेता को एक पदक, 1 लाख रुपये का नकद पुरस्कार और प्रमाण पत्र दिए जाते हैं. आज हम बात करेंगे गीता चोपड़ा और संजय चोपड़ा पुरस्कार पर कि आखिर क्यों दिए जाता है यह अवार्ड और क्या है इसके पीछे की कहानी? 


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गीता और संजय चोपड़ा का अपहरण, हत्या और उनके नाम पर अवार्ड  
भारत सरकार के बाल पुरस्कारों में गीता चोपड़ा और संजय चोपड़ा पुरस्कार-1978 बेहद खास हैं. ये पुरस्कार उन दो भाई-बहनों के नाम पर स्थापित किया गया था, जिसको अपहर्ताओं ने किडनैप कर हत्या कर दी थी. दिल्ली के धौला कुंआ से 26 अगस्त सन् 1978 में गीता और संजय चोपड़ा का दो युवक कुलजीत सिंह उर्फ रंगा और जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला ने फिरौती के लिए अपहरण कर लिया था. बच्चों के पिता के नौसेना अधिकारी होने की जानकारी मिलने पर इन अपराधियों ने अपना इरादा बदल दिया और सबूत मिटाने के लिए संजय और गीता की हत्या कर दी. 


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गीता की हत्या के पहले अपराधियों ने किया था दुष्कर्म 
29 अगस्त 1978 को इन दोनों बच्चों का शव बरामद किया गया. शव के चिकित्सा-परीक्षण से पुष्टि हुई कि गीता के साथ बलात्कार किया गया था. इन दोनों बच्चों का अपहरण उस वक्त कर लिया गया था जब ये ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन में एक प्रोग्राम में हिस्सा लेने जाने के लिए जा रहे थे. एक चोरी की फीएट कार में जब अपराधी बच्चों का ेले जा रहे थे तो कुछ लोगों ने उसका पीछा भी किया था. वह हरियाणा नंबर की पीली रंग की एक कार थी. बाद में कार में पाए गए खून के धब्बे  फोरेंसिक सबूत का हिस्सा बने थे. 


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अपराधियों को दी गई थी फांसी 
घटना के बाद अपराधी शहर छोड़कर भाग गए थे, लेकिन कुछ महीने बाद एक ट्रेन में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 1982 में अदालती कार्यवाही के पश्चात इनके अपराध के लिए फाँसी पर लटका दिया गया. अपराधियों को फांसी पर लटकाए जाने के पहले ही घटना वाले साल  1978 में भारतीय बाल कल्याण परिषद ने 16 से कम आयु के बच्चों के लिए दो वीरता पुरस्कार संजय चोपड़ा पुरस्कार और गीता चोपड़ा पुरस्कार की घोषणा की जिन्हें राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के साथ हर साल दिया जाता है.


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